रविवार, 17 दिसंबर 2017

आदमी वेताल नजर आता है

हर आँख खून यहाँ,हर गली लाल है क्यों
देश मेरा आज ये,बेहाल नजर आता है
स्वारथ की लालसा में,हर सीमा लांघ रहा
संस्कारों से आदमी,कंगाल नजर आता है
जिसने है पाला पोसा,सींचकर बड़ा किया
आज उसे बाप भी,जंजाल नजर आता है
नरक के शैतान भी,दंग देख आदमी को
उनसे भी बड़ा ये,वेताल नजर आता है!

गधा मन माल,,,

गधहा मन माल उड़ावत हे
बघवा मन कांदी खावत हे
पढ़े लिखे मन ठलहा हे इहा
अउ अंगूठाछाप देश चलावत हे!

शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

एक प्रबंध हो राष्ट्रवाद का

सारे सम्बन्धों से बढ़कर,एक सम्बन्ध हो राष्ट्रवाद का
मातृभूमि की खातिर जीने,एक अनुबंध हो राष्ट्रवाद का
हर दिल की धड़कन में हो,हर साँस में ये सुमिरा जाए
भेदभाव को भूलके सारे,एक प्रबंध हो राष्ट्रवाद का!


रविवार, 10 दिसंबर 2017

थानखम्हरिया में हुई राजभाषा आयोग के प्रांतीय कार्यक्रम हेतु तैयारी बैठक

राजभाषा आयोग के प्रांतीय कार्यक्रम की तैयारी हेतु हुई चर्चा बैठक
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थान खम्हरिया:-छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के त्रिदिवसीय प्रांतीय  कार्यक्रम जो बेमेतरा में 19 से 21 जनवरी 2017 को होना है हेतु चर्चा बैठक थानखम्हरिया में कवि गिरधारी देवांगन के व्यवसायिक प्रतिष्ठान में आज  10/12/2017 को हुई जिसमें थानखम्हरिया से प्रांतीय कार्यक्रम जाने वाले साहित्यकारों के नामों पर चर्चा हुई!साथ ही कार्यक्रम हेतु तन मन से जिम्मेदारियों के निर्वहन कर कार्यक्रम को अपनी मेजबानी में ऐतिहासिक बनाने पर चर्चा हुई!विदित हो कि इस आगामी प्रांतीय कार्यक्रम में 1000 से ज्यादा कवियों द्वारा काव्यपाठ कर ,,कवि सम्मेलन को वर्ल्ड रिकार्ड बुक में दर्ज करवाने की योजना है!इस बैठक में मुख्यरूप जिला राजभाषा समन्वयक श्री रामानंद त्रिपाठी जी,श्री गोकुल बंजारे जी,निराला साहित्य समिति थानखम्हरिया के अध्यक्ष श्री राजकमल दररिहा जी,श्री गिरधारी देवांगन जी,श्री रामस्नेही नामदेव जी,श्री मूलचंद निर्मलकर जी एवम सुनिल शर्मा"नील" उपस्थित रहे!

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

जो झूठी


नही भाते उजाले को,,,,अंधेरे में ही रहते है
जो करते व्यर्थ तारीफें,उन्हें ही मित्र कहते है
स्वयं में मुग्ध है देखें,,यहाँ कितने कविगण ही
जो झूठी शान की धारा में,दिन और रात बहते है !

कुएँ के कूपमण्डूक है


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कुएँ के कुपमंडूक है,कुएँ में ही ये रहते है
जो करते वाहवाही है,उन्हें ही मित्र कहते है
स्वयं पर मुग्ध है देखो,यहाँ कितने कविगण ही
जो झूठी शान की जलधार में,दिन-रात बहते है!
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स्वयं पर मुग्ध है देखो,,,


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दिखाये जो इन्हें दर्पण,,उन्हें शत्रु समझते है
जो करते व्यर्थ ही तारीफ,उनको मित्र कहते है
स्वयं पर मुग्ध है देखो,यहाँ कितने कविगण ही
जो झूठी शान की जलधार में,दिन रात बहते है!
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सोमवार, 20 नवंबर 2017

शिक्षाकर्मी की आवाज,,,,,

कोरे आश्वासन की अब तो,चटनी चाट न पाएँगे
बूढ़ेपन की चिंता में यह,पेट काट न पाएँगे
खाली हाथ न लौटेंगे बिन संविलियन आदेश लिए
लेकर आँखों में हम आँसू,खुशियाँ बाँट न पाएँगे!

शनिवार, 11 नवंबर 2017

कहने को सारी,,,,

पोंछ सके जो आँसू मेरे,ऐसा कोई खास नही
रूठ गई है खुशियाँ सारी,जीने की अब आस नही
किसको अपने घाव दिखाऊँ,किससे अपना दर्द कहूँ
कहने को सारी दुनिया है,लेकिन कोई पास नही।

गुरुवार, 9 नवंबर 2017

कहने को सारी दुनिया है लेकिन कोई खास नही-मुक्तक

पोंछ सके जो आँसू मेरे,ऐसा कोई खास नही
पीर मिली इतनी कि अब तो,रिश्तों में विश्वास नही
दुःख के इन घड़ियों ने मुझको,पाठ यही सिखलाया है
कहने को सारी दुनिया है,लेकिन कोई पास नही।

मंगलवार, 7 नवंबर 2017

बन्द खिड़कियाँ मन की खोलो,,,,

बड़े भाग से पाया यह तन,इसका कुछ उद्धार करो
राम नाम की ओढ़ चदरिया,सबपे तुम उपकार करो
दो दिन की है ये जिंदगानी,क्योंकर द्वेष किसी से हो
बन्द खिड़कियां मन की खोलो,सुधियों का सत्कार करो।।
  

गा पाऊँ मैं पीर जगत की,,,,

जो  सोए  हैं उन्हें जगाना,कविता की परिभाषा है,।

राष्ट्रधर्म  हो  सबसे पहले,जीवन की यह आशा है,।

युग युग  तक मैं गाया जाऊँ इसका कोई लोभ नही,।

गा पाऊँ मैं पीर जगत की,बस इतनी अभिलाषा है,।।

-सुनील शर्मा नील

सोमवार, 6 नवंबर 2017

नयन से किंतु अबतक

मेरी खातिर जमाने के,वो कितने मार सहती है
सहे कितने सितम लेकिन, मुझे ही प्यार कहती है
सुना है हर खुशी से है महकती जिंदगी उसकी
नयन से किन्तु अब तक,आंसुओं की धार बहती है।

वो दिखती

मेरी खातिर जमाने के,वो कितने मार सहती है
मिला जिससे उसे धोखा,उसी को प्यार कहती है
मुकम्मल है उसे सबकुछ,वो दिखती खुश भी ऊपर से
नयन से किन्तु अब तक,आंसुओं की धार बहती है।

शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

बिटिया की आँखों में,,,,,


जहाँ रहे वह बाँटती ख़ुशियाँ,सुख की राशि रहती है
पावन गंगाजल होकर भी,सदा ही प्यासी रहती है
ससुराल और पीहर दोनों ने है उसको गैर कहा
बिटिया की आंखों में हरपल,एक उदासी रहती है!।

सोमवार, 30 अक्तूबर 2017

लहर की ये रवानी जब

                          

लहर की ये रवानी जब,तटों से चोट खाएँगे
मिटेगी सारी ही गर्मी,हाथ से नोट जाएँगे
थकेंगे जब जमाने से,करेंगे याद घर को ही
ढलेगी शाम,शाखों पर,परिन्दे लौट आयेंगे।

सोमवार, 23 अक्तूबर 2017

किसने घर को बाँट दिया है,,,,

होते नही इकट्ठा भाई,पहले सा त्यौहारों में
ग्रहण लगाया जाने किसने,इन हँसते परिवारों में
कहने को तो संग है रहते,पर सारे एकाकी है
किसने घर को बाँट दिया है,अलग अलग दीवारों में।

बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

चलो अब की दीवाली में

चलो अधरों पे हम अपने,यह पावन गीत सजाते है
गिरा नफरत की दीवारें,"प्यार की रीत" चलाते है
जलाकर नेह का दीपक,मिटाके मन के अंधियारे
चलो अब की दीवाली में,शत्रु को मीत बनाते है!


मंगलवार, 17 अक्तूबर 2017

किसी के घर अंधेरा है,,,,


किसी को है मयस्सर सब,किसी के भाग्य जाला है
जमाने में भला किसने,अजब ये रीत डाला है
अमीरी औ गरीबी की,भला क्यों है यहाँ खाई
किसी के घर अंधेरा है,किसी के घर उजाला है!

सोमवार, 16 अक्तूबर 2017

वो जिस थाली में,,,

दया के मामले में भी,मजहबी भेद करता है
कभी पंडित के आँसू पे,नही यह खेद करता है
जिन्हें खतरा कहा दुनिया ने,उनको भाई कहता है
वो जिस थाली में खाता है,उसी में छेद करता है!

जलाकर दीप देहरी पर


हुई गल्ती थी क्या मुझसे,समीक्षा कर रहा हूँ मैं
स्वयं के आचरण की अब,परीक्षा कर रहा हूँ मैं
ढल रहा सूर्य जीवन का,चले आओ न तड़पाओ
जलाकर दीप देहरी पर,प्रतीक्षा कर रहा हूँ मैं!

रविवार, 15 अक्तूबर 2017

कुंदन कर लिया

खुद को कुंदन कर लिया,,,,,,
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जिसने भी संकटों से,गठबंधन है कर लिया
जीवन उसने अपना,चंदन है कर लिया
भस्म हो गया वह,जो तपिश सह नही पाया
जिसने सहा इसे,खुद को कुंदन है कर लिया!
**********************************
सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया,बेमेतरा(छ. ग.)
7828927284
9755554470

कुंदन

खुद को कुंदन कर लिया,,,,,,
***********************************
जिसने भी संकटों से,गठबंधन है कर लिया
जीवन उसने अपना,चंदन है कर लिया
भस्म हो गया वह,जो तपिश सह नही पाया
जिसने सहा उसने खुद को, कुंदन है कर लिया!
**********************************
सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया,बेमेतरा(छ. ग.)
7828927284
9755554470

शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

नदी कोई भी हो जाकर समंदर,,,,,


कली यह प्यार की दिल में,मुकद्दर से ही खिलती है
हमें एक सीख जीवन में,कलंदर से ये मिलती है
जो होता भाग्य में अपने,वो चलकर पास आता है
नदी कोई भी हो जाकर,समंदर से ही मिलती है!

मंगलवार, 10 अक्तूबर 2017

अंतर्मन में दीप


सबके अधरों पर मिलकर,आओ हम ये गीत सजाए
भेदभाव की पाटे खाई,प्रेमप्यार की रीत चलाए
इस दीवाली में प्रण ले ,छूटे न कोई भी कोना
अंतर्मन में दीप जला हम,दुश्मन को भी मीत बनाए!

मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

पाखंडियों पर चंद पंक्तियाँ,,,

पाखंडियों पर चंद पंक्तियाँ,,,,
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धरम सनातन की,इस गंगधार में जो
नालियों का अपवित्र,नीर घोलते है जी

भगवा बाना पहन,और कंठहार धर
खुद को यहाँ जो बाबा,पीर बोलते है जी

दास-दास बोलते जो,स्वयं भगवान बन 
"काम"के अधीन हो,अधीर डोलते है जी

ऐसे दुःशासनों के मुंड,काटके संहार करो
आस्था के नाम पर जो,चीर खोलते है जी!
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सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया
7828927284
COpyright

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

सदा ही स्वार्थ बोला है

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प्रदूषित कर दिया जल को ,जहर वायु में घोला है
लहू से मूक जीवों के,रँगा तेरा ये चोला है
मिला उपहार कुदरत का  ,उसे बरबाद कर बैठा
अरे मानव तेरी जिव्हा,सदा ही स्वार्थ बोला है!
☺☺☺☺☺☺☺☺

रविवार, 10 सितंबर 2017

तेरे इस जीभ ने मानव(मुक्तक)


किया दूषित है जल तूने,जहर वायु में घोला है
रक्त से मूक जीवों के,रँगा तेरा ये चोला है
मिली थी प्रकृति उपहार,तू बरबाद कर बैठा
तेरे इस जीभ ने मानव,सदा ही स्वार्थ बोला है!

शनिवार, 9 सितंबर 2017

अब कोई प्रद्युम्न

भेजा था बालक जहाँ,पाने जीवन ज्ञान
उस स्कूल ने काल बन,निगला देखो प्राण

वादा लेकर था गया,फ़िल्म का था प्रोग्राम
लेकिन आई लाश है,कैसी काली शाम

बेटे का क्या दोष था,दिया गया क्यों मार
बेसुध माँ मासूम की,करती यह चित्कार

पापा पत्थर से खड़े,नयनों में अश्रुधार
दीपक आँगन का बुझा,छाया है अंधियार

लाखो लेते फीस पर,सुरक्षा पे है मौन
यक्षप्रश्न यह उठ रहा,जिम्मेदार है कौन

हिंदू-मुस्लिम पे सदा,रोटी सिकते दिन रात
पर  बच्चों की मौत पर,कोई करे न बात

मतदाता ये है नही,बात यही है सार
वरना सियासत यहाँ,करती शब्द बौछार

किंचित न व्यापार हो,शिक्षा का यह काम
पावन मंदिर ज्ञान का,कभी न हो बदनाम

अब कोई प्रद्युम्न न,कभी भी मरने पाए
ऐसा मिलकर आओ हम,भारत नया बनाए!












अब कोई प्रद्युम्न न

भेजा था बालक जहाँ,पाने जीवन ज्ञान
उस स्कूल ने काल बन,निगला है इक प्राण

वादा लेकर था गया,फ़िल्म का था प्रोग्राम
लेकिन आई लाश है,कैसी काली शाम

बेटे का क्या दोष था,दिया गया क्यों मार
बेसुध माँ मासूम की,करती यह चित्कार

पापा पत्थर से खड़े,नयनों में अश्रुधार
दीपक आँगन का बुझा,छाया है अंधियार

लाखो लेते फीस पर,सुरक्षा पे है मौन
यक्षप्रश्न यह उठ रहा,जिम्मेदार है कौन

हिंदू-मुस्लिम पे सदा,रोटी सिकते दिन रात
पर  बच्चों की मौत पर,कोई करे न बात

मतदाता ये है नही,बात यही है सार
वरना सियासत यहाँ,करती शब्द बौछार

किंचित न व्यापार हो,शिक्षा का यह काम
पावन मंदिर ज्ञान का,कभी न हो बदनाम

अब कोई "प्रद्युम्न" न,कभी भी मरने पाए
नील कहे आओ नया,भारत एक बनाए

सब मिलकर रस्ता गढ़े,सूनी न हो कोई गोद
अधरों में खुशियाँ रहे,हर पल हो आमोद!

शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

कविता नही

पढा करो शिद्दत से मुझे तुम
मैं कविता नही अपने हालात लिखता हूँ

जड़े लोकतंत्र

राजनीति का स्तर गिराने में लगे है
एक दूजे को नीचा दिखाने में लगे है
शब्दों की मर्यादा भूल यहाँ कुछ नेता
जड़ें लोकतंत्र की हिलाने में लगे है !

बुनियाद लोकतंत्र की

राजनीति का स्तर गिराने में लगे है
एक दूजे को नीचा दिखाने में लगे है
शब्दों की मर्यादा भूल यहाँ कुछ नेता
नींव लोकतंत्र की हिलाने में लगे है !

लोकतंत्र को

स्तर राजनीति का खिसकाने में लगे है
एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे है
मर्यादा आचरण की भूलकर कुछ नेता
लोकतंत्र को यहाँ गिराने में लगे है !

लोकतन्त्र को

स्तर राजनीति का खिसकाने में लगे है
आग विद्वेष का भड़काने में लगे है
विरोध में मर्यादा भूलकर कुछ नेता
लोकतंत्र को यहाँ रुलाने में लगे है !

ताश हो गए

किसी के इतिहास हो गए
किसी के पास हो गए
जिंदगी एक खेल हो गई
गड्डी के हम ताश हो गए

बुधवार, 6 सितंबर 2017

कर्म के बिन यहाँ फल


साफ जल में कमल तो खिलेगा नही
कर्म के बिन यहाँ फल मिलेगा नही
पथ में बनके जो चट्टान संकट अड़े
बिन किए श्रम क़भी भी हिलेगा नही!

बिन तपे कोई

212 212 212 212
साफ जल में कमल तो खिलेगा नही
कर्म के बिन यहाँ कुछ मिलेगा नही
प्रकृति का नियम है बड़ा ही सरल
बिन तपे कोई कुंदन बनेगा नही!

212 212 212 212
साफ जल में कमल तो खिलेगा नही
कर्म के बिन यहाँ कुछ मिलेगा नही
प्रकृति का नियम है बड़ा ही सरल
बिन तपे कोई कुंदन बनेगा नही!

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

जो तूफानों,,,

212 212 212 212
साफ जल में कमल तो खिलेगा नही
बिन निशा के सवेरा मिलेगा नही
जिंदगी में है इतिहास लिखते वही
जो तूफानों के आगे हिलेगा नही !

सोमवार, 4 सितंबर 2017

कान्हा आ जाओ

(रचनाकार-सुनिल शर्मा "नील",थान खम्हरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
कलयुग में बढ़ते पाप और भगवान् कृष्ण की वर्तमान में आवश्यकता की सार्थकता को प्रदर्शित करती मेरी रचना,कृपा कर बिना रचनाकार के नाम से काटछाट किए बिना शेयर करें..................
कान्हा आ जाओ
प्रेम की राह जग को दिखाने आ जाओ
कान्हा तुम सबके कष्ट मिटाने आ जाओ|

तुमने यमुना के लिए मारा था कालिया को
यहाँ हर नदियाँ प्रदूषित बचाने आ जाओ|

मित्रता भी होती है हैसियत देखकर यहाँ
पाठ सच्ची मित्रता का पढ़ाने आ जाओ|

तेरी प्यारी लाखो गउऐं कटती है हर रोज
प्राण उनके काल से छुड़ाने आ जाओ|

लूटती है अस्मत रोज बहनों की चौक पर
लाज दुशासनों से उनकी बचाने आजाओ|

पुरुषत्व मौन है हर अर्जुन के अंदर आज
उपदेश गीता का फिर सुनाने आ जाओ|

मौजूद हर घर पापाचारी शिशुपाल यहाँ
धार सुदर्शन की इन्हें दिखाने आ जाओ|

परिभाषा बदल दी प्रेम की कामकीड़ों ने
अर्थ सच्चे प्रेम का इन्हें बताने आ जाओ|

मारा था द्वापर में तुमने हत्यारे कंश को
भ्रूण के हत्यारो को भी चेताने आ जाओ|

कौरव ताकतवर सही इस कलयुग में
सत्यरुपी पांडवों को जिताने आ जाओ|

सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया,बेमेतरा
(छत्तीसगढ़)
7828927284
9755554470
रचना-05/09/2015
©®

रविवार, 13 अगस्त 2017

तिरंगा

तिरँगा
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दुनियाँ का सरदार तिरंगा।
धरती का श्रृंगार तिरंगा।1
चाहे दुश्मन कोई आए
हरदम है तैयार तिरँगा!2
जोभी आया मुँह की खाया
लहराया हर बार तिरंगा!3
पाला न कभी बैर किसी से
यारों का है यार तिरंगा!4
जब भी आए बात आन पे
बन जाता खूँखार तिरंगा!5
जिसके खातिर झूले फाँसी
उन वीरों का प्यार तिरंगा!6
तोड़ गुलामी की जंजीरें
फूटी बन जलधार तिरंगा!7
त्याग तपस्या का है पोषक
सब धर्मों का सार तिरंगा!8
जब-जब भूला विश्व आचरण
सिखलाता व्यवहार तिरंगा!9
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मापनी : 22  22  22  22
काफ़िया : " आर "
रदीफ़ : " तिरंगा "

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सुनिल शर्मा नील

दुनिया का सरदार तिरंगा

दुनियाँ का सरदार तिरंगा।
सबका है सत्कार तिरंगा।1
चाहे दुश्मन कोई आए
हरदम है तैयार तिरँगा!2
जोभी आया मुँह की खाया
लहराया हर बार तिरंगा!3
पाला न कभी बैर किसी से
यारों का है यार तिरंगा!4
गर आ जाए बात आन की तो
बन जाता खूँखार तिरंगा!5
जिसके खातिर झूले फाँसी
उन वीरों का श्रृंगार तिरंगा!6
तोड़ गुलामी की जंजीरें
फूटी बन जलधार तिरंगा!7
त्याग तपस्या का है पोषक
सब धर्मों का सार तिरंगा!8
******************************
सुनिल शर्मा नील

शनिवार, 12 अगस्त 2017

गोरखपुर कांड


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कितने आँगन से किलकारी के नातों को वे तोड़ गए
कितने आंखों से झरते आँसू के रिश्तों को वे जोड़ गए
तंत्र की लापरवाही व लाचारी ने कैसा ये नरसंहार किया
कितने माँ बाप के लिए सिसकती रातों को वे छोड़ गए!
                                                     -सुनिल शर्मा नील

गोरखपुर कांड पर मुक्तक


कितने आँगन से चिड़ियों के नातों को वे तोड़ गए
कितने आंखों से आँसू के रिश्तों को वे जोड़ गए
तंत्र की लापरवाही ने कैसा ये नरसंहार किया
कितने माँ के लिए सिसकती रातों को वे छोड़ गए!

शुक्रवार, 11 अगस्त 2017

गैर तेरे दिल में पलता रहा बैर

गैर तेरे दिल में पलता रहा बैर
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न तिरँगा,न ही कभी वन्देमातरम को भाया उसने
ओढ़ संविधान का चोला गीत कट्टरपंथी गाया उसने
शोहरत मिली उसे हिंदुस्तान में हिमालय से ऊँची
पर अफसोस अपना वीभत्स चेहरा दिखाया उसने!

गद्दार था

न तिरँगा,न ही कभी वन्देमातरम को भाया उसने
संविधान का चोला ओढ़ गीत कट्टरपंथी गाया उसने
उसे शोहरत दी मेरे हिंदुस्तान ने हिमालय से ऊँची
अफसोस गद्दार था चेहरा गद्दारी का दिखाया उसने!

गुरुवार, 10 अगस्त 2017

सरदार तिरंगा

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दुनियां में सरदार तिरंगा ।
अपनों पर है भार तिरंगा ।
चाहे आए कोई दुश्मन
हरदम है तैयार तिरँगा!
जो भी आये मुँह की खाए
लहराया हर बार तिरंगा!
जिसकी खातिर चूमे फाँसी
उन वीरों का प्यार तिरंगा!
तोड़ गुलामी की जंजीरें
फूटी बन जलधार तिरंगा!
ऊँचें नीचे पथ पे चलकर
हुई है सत्तर पार तिरंगा
त्याग तपस्या का परिचायक
सब धर्मों का सार तिरंगा
दुनिया में है न्यारा सबसे
धरती का श्रृंगार तिरंगा!
नही किसी से लड़ता पहले
यारो का है यार तिरंगा
पर जब बात आन की हो तो
बन जाता खूंखार तिरंगा!
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मापनी : 22  22  22  22
काफ़िया : " आर "
रदीफ़ : " तिरंगा "

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सुनीलशर्मा नील

मंगलवार, 8 अगस्त 2017

बहन से वादा

बहन से वादा
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कड़ी ये प्यार की हरगिज ,नही मैं टूटने दूँगा
कभी भी एक पल तुझको ,नही मैं रूठने दूँगा
निभाऊंगा वचन बहना मैं अपने प्राण देकर भी
कभी राखी के बंधन को, नही मैं छूटने दूँगा!
                                   
                   सुनिल शर्मा नील

सोमवार, 7 अगस्त 2017


कड़ी ये प्यार की हरगिज नही मैं टूटने दूँगा
कभी भी एक पल तुझको नही मैं रूठने दूँगा
रहूँ  चाहे जहाँ भी मैं मुहब्बत कम नही होगी
कभी राखी के बंधन को नही मैं छूटने दूँगा!

साथ भाई बहन का


कड़ी ये प्यार की हम-तुम कभी न टूटने देंगे
कभी भी एक दूजे को नही हम रूठने देंगे
रहें चाहे जहाँ दोनों मुहब्बत कम नही होगी
साथ भाई बहन का हम कभी न छूटने देंगे!

साथ भाई बहन का


कड़ी ये प्यार की हम-तुम कभी न टूटने देंगे
कभी भी एक दूजे को नही हम रूठने देंगे
रहें चाहे जहाँ दोनों मुहब्बत कम नही होगी
साथ भाई बहन का हम कभी न छूटने देंगे!

रविवार, 6 अगस्त 2017

भारत के मुक्के ने

भारत के मुक्के ने चीन को निढाल कर दिया
बोलती बंद कर बड़बोले को बेहाल कर दिया
"डोकलाम" की ज़मी पे तेरी नापाक हरकतों ने
हिंदुस्तानियों की आंखों को अब लाल कर दिया!

शनिवार, 5 अगस्त 2017

भारत के मुक्के ने


भारत के मुक्के ने चीन को निढाल कर दिया
बोलती बंद कर बड़बोलो को बेहाल कर दिया
"डोकलाम"का गजब ट्रेलर दिखाकर विजेंदर ने
हिंदुस्तान की जनता को निहाल कर दिया!



तलवारों के दम

तलवारों के दम पर हमने कब किसको मजबूर किया !
गले लगाकर रखा सबको किसको खुद से दूर किया !
सदा शांति के रहे पक्षधर हम,लेकिन हम कमजोर नही ,
वक़्त पड़ा तब सिकंदरों के दर्प को हमने चूर किया।

गुरुवार, 3 अगस्त 2017

हम हिन्दू है-मुक्तक

नही तलवार के बल पर किसी को धर्म बदलने मजबूर किया है
सदा गले लगाया है सबको,नही किसी को स्वयं से दूर किया है
शांति के पक्षधर है पर इसे कभी हमारी कमजोरी न समझना
हम हिन्दू है हमने सैकड़ों सिकंदरों का गुरूर चूर किया है!

गुरुवार, 27 जुलाई 2017

बिखरता-सँवरता बिहार

बिखरता-संवरता बिहार
*********************

बेमेल थी यह जोड़ी इसे तो टूटना ही था
      "हठबंधन"के इस गाँठ को तो छूटना ही था
भरोसे की ये पतंग तो,पहले ही गई थी कट
     कटी जो पतंग तो बीजेपी को लूटना ही था!

-सुनिल शर्मा"नील"

रविवार, 23 जुलाई 2017

हमसे बिछड़ के भी


हमसे बिछड़ के वे हमारे पास रहेंगे
बनके सदा मन में सुखद अहसास रहेंगे
कहता है कौन "बाबूजी" हमें छोड़ गए है
बनकर के प्रेरणा सदा वे साथ रहेंगे!

गुरुवार, 20 जुलाई 2017

मेरे सुपुत्र देव

मेरे सुपुत्र देव.............

आज रश्मि रथ है पर कल अग्नि पथ होगें बेटा !
              तुझे  हराने को आतुर  अनगिनत रथ होगें बेटा !
भूल न जाना कभी तू ,पाठ अभिमन्यु की तरह
           संघर्ष मंत्र से ही सफल तुम्हारे मनोरथ होगें बेटा !!

पापा ( सुनिल शर्मा नील )

मजदूर

          """मजदूर""""""
$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$
पसीने से नहाया धूल धूसरीत वह मजदूर
सूर्य भी जिसके आगे सर झुकाता है
सृष्टि का हर विकास जिसकी देन है
आखिर क्यों अभावग्रस्त जीवन बिताता है?

रोटी की जुगत में खून पसीना एक करते
कभी खानों,मिलों,स्टेशनों में नजर आता है
हाड़तोड़ श्रम कर दो जून की रोटी जुटाता है
श्रमवीर वह पग-पग पे क्यों शोषित किया
जाता है?
सृष्टि का हर विकास...................

विडंबना तो देखो संसार की,,,
स्कूल मजदूर बनाता है उसके बच्चे शिक्षा से
दूर है
होटल मजदूर बनाता है उसके बच्चे भोजन से
दूर है
अस्पताल मजदूर बनाता है उसके बच्चे ईलाज
से दूर है
दूसरों को महल देने वाला झोपड़ी में पैदा होकर झोपड़ी में मर जाता है!
सृष्टि का हर विकास............

क्यों न हम एक नया समाज बनाए
कोई शोषित न हो जहाँ सबको अधिकार दिलाए
ऊंच नीच का भेद भुलाकर सबको गले लगाए
धर्म मानवता का हमें यही पथ तो दिखलाता है!
सृष्टि का हर विकास...............
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रचनाकार-सुनिल शर्मा"नील"
              थानखम्हरिया(छत्तीसगढ़)
               7828927284
                सर्वाधिकार सुरक्षित

बुधवार, 19 जुलाई 2017

लड़ता देखा कोई कोई


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रोते हैं सब लोग धरा पर,हंसता देखा
कोई कोई
सहते है सब लोग यहाँ पर,लड़ता देखा
कोई कोई
जिसने खुद का मतलब समझा,इतिहास
वही तो लिख पाया
कहते है सब लोग यहाँ पर,करता देखा
कोई कोई
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सुनिल शर्मा"नील"
7828927284

पाँखों वाला कोई कोई

भौतिकता में अंधे सारे,आँखों वाला है
कोई कोई
पंख कुतरते एक दूजे के,पाँखों वाला है
कोई-कोई
ठूठ बचें है केवल अब तो वृक्ष नही तुम
पाओगे
मानवता के इस कानन में शाखों वाला है
कोई कोई

गुरुवार, 13 जुलाई 2017

हम उनकी लाशों पर भी


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सवा अरब की आबादी को वो लात लगाकर चले गए
घर घुसके आतंकी हमको औकात दिखाकर चले गए
हम उनकी लाशों को भी जन्नत की मिट्टी देते है
वो अमरनाथ यात्रा पर भी उत्पात मचाकर चले गए!
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वो भोले के भक्तों पर ही उत्पात मचाकर
चले गए




खुद के रक्षक बनना


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भक्षकों के लिए भक्षक बनना सीखो
तक्षकों के लिए तक्षक बनना सीखो
औरों पर इतनी निर्भरता ठीक नही
जीना है तो खुद रक्षक बनना सीखो!
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भूल गया है आदमी
*******************************   "सोना" पाकर सोना भूल गया है आदमी
फसल "प्रेम" की बोना भूल गया है आदमी
स्वार्थ की दौड़ में पीछे छूँट गया सबकुछ
गम में औरों के रोना भूल गया है आदमी!
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सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया(छत्तीसगढ़)
7828927284
सर्वाधिकार सुरक्षित

बुधवार, 12 जुलाई 2017

वो भोलेभक्तों का

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सवा अरब की आबादी को लात
दिखाकर जाते है
घर घुसके आतंकी हमको औकात
दिखाकर जाते है
हम उनके लाशों को भी इज्जत
की मिट्टी देते है
वो भोलेभक्तों का हमको रक्तपात
दिखाकर जाते है!
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रविवार, 9 जुलाई 2017

भूल गया है आदमी
*******************************   "सोना" पाकर सोना भूल गया है आदमी
फसल "प्रेम" की बोना भूल गया है आदमी
स्वार्थ की दौड़ में पीछे छूँट गया सबकुछ
गम में औरों के रोना भूल गया है आदमी!
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सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया(छत्तीसगढ़)
7828927284
सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रवार, 16 जून 2017

मेरे राह के

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मेरे लिए खुशियाँ बुनने वाले
मेरे लिए डांट सुनने वाले
ईश्वर आपको सदा खुश रखें
मेरे राह के कांटे चुनने वाले!
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मंगलवार, 13 जून 2017

जिसे खुदमें डूबने का तरीका
आ गया
समझो उसे जिंदगी जीने का सलीका आ गया

सोमवार, 12 जून 2017

सब कुछ पास होकर भी एक कमी है
वो खुशी ही क्या जिस्मेंआँखों में नमी है
-सुनिल शर्मा"नील"

रविवार, 11 जून 2017

मुक्तक

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हर आगाज का अंजाम तय है
हर सफर का मुकाम तय है
खामोशी से मेहनत करते हो
श्रम को सफलता का जाम तय है!
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रविवार, 28 मई 2017

गौ काट रहे हो

केरल में राजनीतिक अंधों द्वारा सरेआम गौ माता को काटकर बीफ पार्टी मनाने वाले विधर्मियों पर आक्रोश की पंक्तियाँ,,,,,,,

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ये कैसा विरोध जिसमें समाज बाँट रहे हो
देशधर्म भूल पार्टी के तलुवें चाट रहे हो
ये जानकर भी वह माँ,हम उसके बेटे है
राजनीतिक चिढ़ में तुम"गौ"काट रहे हो!
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सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छत्तीसगढ़)
7828927284,28/5/2017
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मंगलवार, 23 मई 2017

मानवता की परिभाषा ढूँढ़ रहा हूँ

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निराशा के गगन में एक आशा ढूँढ़ता हूँ मैं
नफरतों के चम में एक दिलासा ढूँढ़ता हूँ मैं
सिखाया था बुजुर्गों ने बड़े ही प्यार से जिसको
वो विस्मृत प्रेम की भाषा यहाँपर ढूँढ़ता हूँ मैं !
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रविवार, 21 मई 2017

एक पिता से उसका

एक पिता से उसका,,,,,,
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अधरों से मुस्कान छीन ली उसकी है ।
दिल में जो अरमान छीन ली उसकी है ।
स्वार्थसिद्धि में आज किसी कैकई ने
दसरथ से संतान छीन ली उसकी  है ।
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