शुक्रवार, 13 मई 2022

कुण्डलिया-मानव


कुण्डलिया-मानव

मानव जीवन है वही, जिसमें हो परमार्थ |
पशु सम जीवन जानिए, जिसमें केवल स्वार्थ ||
जिसमें केवल स्वार्थ, न समझे पर की पीड़ा |
केवल खुद का ध्यान, जानिए उसको कीड़ा ||
धरती पर है बोझ, मनुज तन में है दानव |
आये सबके काम, वही है सच्चा मानव ||

सुनिल शर्मा नील

वो मलेच्छ नयनों का डर शिवराय था(शिवाजी पर मनहरण घनाक्षरी)

काँपे अरिदल जिन्हें देखकर थरथर
सिंह के समान ऐसा नर शिवराय था |

नर गरजन कर रण भू में हर-हर
जीत लेता आधा वो समर शिवराय था|

समर लड़ा जो भगवा को निज शीश धर
पीर भारती का लेने हर शिवराय था |

हरता था आत्मा चलाये बिना तलवार
वो मलेच्छ नयनों का डर शिवराय था ||