शनिवार, 31 जुलाई 2021

गाँव छोंड़ के(कुकुभ छंद 1)

*कुकुभ छंद प्रयास-1*
       *गाँव*
*(सुधार के बाद)*

*गाँव छोड़ के जावत हावस*, *पाछू बड़ पछताबे गा*|
*दया मया अउ मेल गाँव कस*, *कहाँ शहर मा पाबे गा* ||

*धनहा डोली हवय गाँव मा*, *छाँव हवय अमराई के*|
*ग्वाला के बंशी के सुर हे*, *मया बाप अउ दाई के* ||
*देख गाँव मा हरियाली हे*, *अउ ममहावत माटी हे*|
*गिल्ली डंडा भटकउला हे, भौंरा खो-खो बाँटी हे*||
*सुआ ददरिया गीत भूल झन*,
*डिस्को मा भरमाबे गा*|
*गाँव छोंड़ के जावत हावस, पाछू बड़ पछताबे गा*||   |1|

*खेती बारी के बूता हर, लागत तोला भारी हे*|
*जे माटी मा खेले कूदे, लागत ओ बीमारी हे*||
*जब ले गे हस आन शहर मा, सुन्ना गाँव हवय भाई*|
*सुरता करके आँसू झरथे , बड़ रोवत रहिथे दाई* ||
*दाई के कोरा सुरता कर, जब तैं हा खो जाबे गा*|
*गाँव छोंड़ के जावत हावस, पाछू बड़ पछताबे गा*||  | 2|

*कचरा,धुआँ,प्रदूषण हावय, शहर मा झगरा दंगा हे*|
*जेवन सादा हवय गाँव मा, नदिया जइसे गंगा हे*||
*गाँव खड़े रहिथे सुख-दुख मा, काम सबो के आथे रे*|
*शहर हवय मतलब के साथी, गीत लोभ के गाथे रे* ||
*मर जाबे कोनो नइ पूछय, शहर कभू झन जाबे गा|*
*गाँव छोंड़ के जावत हावस, पाछू बड़ पछताबे गा*||  |3|



*भीड़ भाड़ के जंगल मा जब, रहि के मन जब थक जाही* |
*शोर-शराबा ला सुन के जब, माथा हा तोर पिराही*||
*दोसा पीजा चाउमीन मन, चारे दिन तोला भाही*|
*लोभ कपट अउ स्वारथ ले जब, दुख तोरे अंतस पाही*||
*भोलापन ला अपन गाँव के,*मन मा तैं सोरियाबे गा*|
*गाँव छोड़ के जावत हावस, पाछू बड़ पछताबे गा* || |4|


*सुनिल शर्मा नील*

शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

भ्रष्टाचार(ताटंक छंद- 1)

*ताटंक प्रयास-1*
*विषय-भ्रष्टाचार*
*(सुधार के बाद*)

*मनखे मन के भेस बना के, बइठे गिद्ध शिकारी हे* |
*भारत माता ला नोंचत सब, पापी भ्रष्टाचारी हे* ||

*अत्याचार करत हे देखव , जेब अपन भर के भारी* |
*लालच के इन हावय रोगी, नइ तो जानय लाचारी* ||

*काम कराये पइसा होना, तब फाइल सरकाथे जी* |
*नैतिकता ले कोसो दुरिहा, रिश्वत इन ला भाथे जी* ||

*रिश्वत सेती अनुकम्पा बर, ठोकर ला विधवा पाथे* |
*पेंशन खातिर नत्थू -फत्तू , आफिस मा गारी खाथे* ||

*बगरे हावय हमर देश मा, लाइलाज ये बीमारी*  |
*गाँव शहर आफिस संसद मा, अमरबेल कस गद्दारी* ||
 
*लोभी मन हा नेता साहब, अउ नौकर सरकारी हे* |
*बाहिर दिखथे देशभक्त अउ, भीतर हिस्सेदारी हे* ||

*जल जमीन जंगल ला बेंचत, ईमन स्वारथ ला भाथे* |
*जुरमिल दानव मन जम्मों झन, गौ के चारा ला खाथे* ||

*संविधान ला कुछ नइ समझय, कभू कहाँ इन डर्राथे* |
*नेता मन के संरक्षण मा, बल जम्मों बैरी पाथे* |

*धन ला सब स्विसबैंक खुसेरत, जनसेवक कहलाथे गा* |
*जानत हे भारत के वोंटर, पइसा मा बिक जाथे गा* ||

*नैतिकता ला बेंच खाय हे, लाज कहाँ इन ला आही* |
*तभे सुधरही अइसन दुख जब , ईखर घर कोनो पाही* ||

*सड़क बाँध पुलिया भसके मा, कतको जीव गँवा जाथे* |
*तभो कहाँ ये पापी मन के, चिटकुन दुख मन मा आथे* ||

*बन्द करव अब लेन देन ला, भ्रष्टाचार मिटाना हे* |
*अपन काम करवाए खातिर, लाइन भले लगाना हे* ||

*उमर कैद के सजा मिलय जे, रिश्वत मा पकड़े जावै* |
* *देवइया लेवइया मन ले, डाँड़ इहाँ बड़का पावै* *  ||

*संसद मा सब दल के सुमता , होना बहुत जरूरी हे* |
*रिश्वत लोभी ला रोटी कस , पोना बहुत जरूरी हे* ||


*सुनिल शर्मा"नील"*
*थान खम्हरिया*
*8839740208*

गौ माता(लावणी छंद 1)

गौ माता
(लावणी छंद प्रयास-1)
सुधार के बाद

मनखे मन ले गउ माता हा, पूछत आज सवाल हवय |
सरबस दे के बेटा मोरे, काबर अइसन हाल हवय ||

नइ माँगव मैं कभू अपन बर, सब ला मैं देवत रहिथँव |
तभो इहाँ दुख ला जिनगी भर, काबर बोलव मैं सहिथँव ||

खेती बारी के बूता मा, काम तुँहर मैं हा आथँव |
दूध दही घी के बदला मा ,जूठा काठा ला पाथँव  ||

मोर देह के अंग-अंग मा, देवी-देव समाय हवय |
राम कृष्ण ज्ञानी मानी सब, मोरे महिमा गाय हवय ||

दूधमुहा जब दाई खोथे, जिनगी ओला दे देथँव |
साँसा के डोंगा ला ओखर, बन के माँझी मैं खेथँव ||

फेर आज भटकत हँव भूखे, गारी सब के खावत हँव |
रद्दा मा मोटर के नीचे ,आ के जीव गँवावत
हँव ||

मोर मया के करजा कइसन, सोंचव आज चुकावत हव |
मोला बेंचत हव लालच मा, कटवा के मुसकावत हव ||

दूध पिया  जे ला पोंसे हँव, ममता मोर भुलाये हे |
गौ माता ला बिसरा के सब, स्वारथ मा भरमाये हे ||

गौचर भुइयाँ हमर छेंक के, मनखे अब चंडाल बने |
दया धरम अउ नीत भुला के, देखव अब बेताल बने ||

गौ सेवा हा लगथे अब तो, एमन ला  लाचारी हे |
कुकुर पोंसना फैशन बन गे, घर रोवत महतारी हे ||

गंगा-गीता-गौ माता ले, जम्मों ये संसार हवय |
करलव तुमन इँकर सेवा ला, जग के इन आधार हवय ||

कहना मोर मान लव भाई, झन तुम अइसन काम करव |
माँ बेटा के पबरित नाता ,कभू नहीं बदनाम करव ||

गौ माता के जय होही तब, जब कुछ कदम उठाहू जी |
नारा बाजी छोंड़ असल जब, सेवा तुमन  बजाहू जी ||

अइताचार देख के कइसे, लहू तुँहर नइ खउलत हे |
काबर चुप हव लहू देख जब,  मोला काटत पउलत हे ||

मोर मान बर आघू आवव, दाई के तुम ढाल बनव |
धर के टँगिया कल्कि बन के, बैरी के 
अब काल बनव ||


माँग तुमन संसद ले करके, कानून पोठ बनावव अब|
पूजे जावय जिहाँ गाय हा,
अइसन दिन फिर लावव अब ||

सुनिल शर्मा"नील"
बेमेतरा

सोमवार, 19 जुलाई 2021

मत्तगयंद सवैया-7

सवैया प्रयास-7
(विश्वामित्र जी यज्ञ व ऋषियों के रक्षार्थ दशरथ जी से राम को मांगते है इस पर दशरथ जी कहतें है)

राम सुकोमल बाल अबोध कहाँ यह काज भला कर पाहिं |
रावण वेग न देव सहै सुत मोर प्रहार कहौ सहि जाहिं |
दानव के छल-छिद्र बलाबल तोड़ निषंग कहाँ वह लाहिं |
लेकर मैं निज सैन्य समूह चलूँ तव रक्षण
कानन माहीं ||

निषंग= तरकश

सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया

बुधवार, 14 जुलाई 2021

ताटंक छंद-1(विषय -भ्र्ष्टाचार)



मनखे मन के भेस बना के, बइठे गिद्ध शिकारी हे|
भारत माता ला चीथत सब, पापी भ्रष्टाचारी हे ||

अत्याचार करत हे देखव , जेब अपन भर के भारी|
लालच के इन आवय रोगी, नइ तो जानय लाचारी||

काम कराये पइसा होना, तब फाइल सरकाथे जी |
नैतिकता ले कोसो दुरिहा, रिश्वत इन ला भाथे जी* 
||

रिश्वत सेती अनुकम्पा बर, ठोकर ला विधवा पाथे |
पेंशन खातिर नत्थू -फत्तू , आफिस मा गारी खाथे||

बगरे हावय हमर देश मा, लाइलाज ये बीमारी  |
गाँव शहर आफिस संसद मा, अमरबेल कस गद्दारी||
 
रिशवतिहा मन नेता साहब, अउ नौकर सरकारी हे|
बाहिर दिखथे देशभक्त अउ, भीतर हिस्सेदारी हे ||

जल जमीन जंगल ला बेंचत, ईमन स्वारथ ला भाथे|
जुरमिल दानव मन जम्मों झन, गौ के चारा ला खाथे ||

संविधान ला कुछ नइ समझय, कभू कहाँ इन डर्राथे |
नेता मन के संरक्षण मा, बल जम्मों बैरी पाथे |

स्विसबैंक मा रूपया खरबो, जनसेवक कहलाथे गा|
जानत हे भारत के बोटर, पइसा मा बिक जाथे गा||

नैतिकता ला बेंच खाय हे, लाज कहाँ इन ला आही|
तभे सुधरही अइसन दुख जब , ईखर घर कोनो पाही ||

सड़क बाँध पुलिया भसके मा, कतको जीव गँवा जाथे |
तभो कहाँ ये पापी मन के, चिटकुन दुख मन मा आथे ||

बन्द करव अब लेन देन ला, भ्रष्टाचार मिटाना हे |
अपन काम करवाए खातिर, लाइन भले लगाना है||

उमर कैद के सजा मिलय जे, रिश्वत मा पकड़े जावै|
देवइया लेवइया मन ले, डाँड़ इहाँ बड़का पावै  ||

संसद मा सब दल के सुमता , होना बहुत जरूरी हे|
रिश्वत लोभी ला रोटी कस , पोना बहुत जरूरी हे||


*सुनिल शर्मा"नील"*
*थान खम्हरिया*
*8839740208*

सोमवार, 12 जुलाई 2021

मत्तगयंद सवैया-6(चारों भाइयों का नामकरण)

सवैया -6
(वशिष्ठ जी चारों भाइयों का नामकरण करते हुए दशरथ जी व रानियों से कहतें है)

*राम* जपै सुखधाम मिलै सुत तोर बड़े जग भार उठाहिं।
दूसर पूत बड़ा धरमी जगपालक *भारत* नाम धराहिं |
*लक्ष्मण* तीसर पुत्र तुम्हार नरेश सुनौ गुणग्राम जनाहिं |
काँपय शत्रु सुनै जब नाम कनिष्ठ *अरिंदम* नाम कहाहिं  ||

अरिंदम=शत्रुघ्न

सुनिल नील
(छत्तीसगढ़)

रविवार, 11 जुलाई 2021

कुकुभ छंद(गाँव छोंड़ के जावत हावस)

*कुकुभ छंद प्रयास-1*
       *गाँव*
*(सुधार के बाद)*

*गाँव छोड़ के जावत हावस*, *पाछू बड़ पछताबे गा*|
*दया मया अउ मेल गाँव कस*, *कहाँ शहर मा पाबे गा* ||

*धनहा डोली हवय गाँव मा*, *छाँव हवय अमराई के*|
*ग्वाला के बंशी के सुर हे*, *मया बाप अउ दाई के* ||
*देख गाँव मा हरियाली हे*, *अउ ममहावत माटी हे*|
*गिल्ली डंडा भटकउला हे, भौंरा खो-खो बाँटी हे*||
*सुआ ददरिया गीत भूल झन*,
*डिस्को मा भरमाबे गा*|
*गाँव छोंड़ के जावत हावस, पाछू बड़ पछताबे गा*||   |1|

*खेती बारी के बूता हर, लागत तोला भारी हे*|
*जे माटी मा खेले कूदे, लागत ओ बीमारी हे*||
*जब ले गे हस आन शहर मा, सुन्ना गाँव हवय भाई*|
*सुरता करके आँसू झरथे , बड़ रोवत रहिथे दाई* ||
*दाई के कोरा सुरता कर, जब तैं हा खो जाबे गा*|
*गाँव छोंड़ के जावत हावस, पाछू बड़ पछताबे गा*||  | 2|

*कचरा,धुआँ,प्रदूषण हावय, शहर मा झगरा दंगा हे*|
*जेवन सादा हवय गाँव मा, नदिया जइसे गंगा हे*||
*गाँव खड़े रहिथे सुख-दुख मा, काम सबो के आथे रे*|
*शहर हवय मतलब के साथी, गीत लोभ के गाथे रे* ||
*मर जाबे कोनो नइ पूछय, शहर कभू झन जाबे गा|*
*गाँव छोंड़ के जावत हावस, पाछू बड़ पछताबे गा*||  |3|



*भीड़ भाड़ के जंगल मा जब, रहि के मन जब थक जाही* |
*शोर-शराबा ला सुन के जब, माथा हा तोर पिराही*||
*दोसा पीजा चाउमीन मन, चारे दिन तोला भाही*|
*लोभ कपट अउ स्वारथ ले जब, दुख तोरे अंतस पाही*||
*भोलापन ला अपन गाँव के,*मन मा तैं सोरियाबे गा*|
*गाँव छोड़ के जावत हावस, पाछू बड़ पछताबे गा* || |4|


*सुनिल शर्मा नील*

मंगलवार, 6 जुलाई 2021

मत्तगयंद सवैया-5

सवैया -5
(राजा दशरथ जी अपने वंश दीपक न होने से निराश है और  ईश्वर से प्रार्थना करतें है)

राज मिला सुख साज मिला सिर ताज मिला तबहू सुख नाहीं |
पूत नही तव भार कहो सुरनायक मोर 
कहाँ उठ पाहीं |
सूर्य समान प्रदीप्त रहा रघुवंश भला अब
कोन चलाहीं |
हाथ खड़े करजोर कहे अवधेश कृपा करहू अब ताहीं ||

सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया(छत्तीसगढ़)
8839740208

रविवार, 4 जुलाई 2021

मत्तगयंद सवैया-4



(अयोध्या वापसी पर लखन लाल से भरत जी  कहतें है)

छाँह बने तुम राघव के अरु त्याग दिए
सुख नींद तिहारो | 
राम-रमा पथ के सब कंकड़ कंटक बीन सदा तुम टारो |
राम सनेह सभी हम पाय नही पर तोर समान दुलारो |
लक्ष्मण भाग बड़े तुँहरे रघुनायक के नित पाँव पखारो ||

सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया(छत्तीसगढ़)
8839740208

शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

सवैया -3(राम जी भरत मिलाप)

सवैया-3

चौदह बर्ष बिता वनवास कहूँ तुरतै निज धाम न आहू |
मारग मध्य विलंब प्रभू करहूँ तव आप बड़ा पछताहू |
याद रहे प्रण मोर सियापति उक्ति कभू मत भ्रात भुलाहू |
दर्शन दूसर वार न देत प्रभू निज जीवन मोर गवाहूँ ||

*वार=दिन*

सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया(छत्तीसगढ़)

सवैया-3(राम भरत मिलाप)

सवैया-3

चौदह बर्ष बिता वनवास प्रभो तुरतै निज धाम न आहू |
मारग मध्य विलंब प्रभू करहूँ तव आप 
बड़ा पछताहू |
याद रहे प्रण मोर सियापति उक्ति कभू 
मत मोर भुलाहू |
दर्शन दूसर वार दिए न तो जीवित दर्शन मोर न पाहू ||

सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया(छत्तीसगढ़)