बुधवार, 24 मार्च 2021

सहते रहें है छल

सहते रहें है छल,जाफर व कासिमो के
सदियों से भारत की ,है यही व्यथा रही |

प्रेम और मान दे दुलारतें रहें हैं जिन्हें
उनकी सदैव डसने की ही प्रथा रही |

भाई कह हृदय लगाके छुरी खाते रहें
भाईचारे वाली बात उनकी वृथा रही |

कमलेश रणजीत,गगन,अंकित,रिंकू
निर्दोषों के हत्याओं की सैकड़ों कथा रही ||

सुनिल शर्मा"नील"



गुरुवार, 18 मार्च 2021

अमृत ध्वनि 1(भोलेनाथ)

*अमृत ध्वनि छंद*
*भोलेनाथ*
क्रमांक-1
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गंगा हावय मूड़ मा, भसम लगाए अंग |
नरी बिराजे नाग हे, गौरी बइठे संग ||
गौरी बइठे ,संग माथ मा, चंदा हावय |
सुमिरव भोले, नाम जगत ले ,पार लगावय ||
जेंन नाव लय, होवय ओखर, तन-मन चंगा |
जय-जय भोले, धारे तैं हर, पावन गंगा ||
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सुनिल शर्मा

शनिवार, 13 मार्च 2021

विधाता छंद(मुक्तक -प्रतीक्षा)

हमारी जिंदगी हरपल यहाँ पर इक 
परीक्षा है |
समय के हाथ से होनी यहाँ सबकी 
समीक्षा है |
कठिन कुछ भी नहीं जग में अगर तुम 
ठान लोगे तो,
मगर हर लक्ष्य पहले माँगती हमसे 
प्रतीक्षा है ||

शुक्रवार, 12 मार्च 2021

विधाता छंद-जीवन

सदा जीवन हमारा यह परीक्षा माँगती 
हमसे |
किये हर कार्य की हर पल समीक्षा माँगती 
हमसे |
कठिन कुछ भी नही पौरुष से सबकुछ है सुलभ जग में ,
मगर हर लक्ष्य पहले इक प्रतीक्षा माँगती 
हमसे ||

शुक्रवार, 5 मार्च 2021

खून(कुण्डलिया 9)

कुण्डलिया सृजन 9
*खून*
(सुधार के बाद)
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सबके नस मा एक हे, लाल लहू के रंग |
काबर होथे फिर इहाँ, जात-पात के जंग ||
जात-पात के जंग,भेद ला सबझन छोड़व |
टूटत हे परिवार, मया के नाता जोड़व ||
सब ला मिलय अगास, रहय झन कोनों दब के |
जुरमिल होय विकास, हमर भारत मा सब के ||
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सुनिल शर्मा

आरक्षण(कुण्डलिया 8)

कुंडलिया-8
*आरक्षण*
सुधार के बाद
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बनथे सदा चुनाव मा, आरक्षण हथियार |
नेता मन के आय ये, जीते के आधार ||
जीते के आधार, जीभ ले जहर घोरथे |
जात-पात मा बाँट, देश ला हमर टोरथे ||
इरखा के बों बीज, भेद के गड्ढा खनथे |
स्वारथ बर सब आज, लोग मन नेता बनथे |
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सुनिल शर्मा

अगोरत हावव तोला(कुण्डलिया 7)

कुंडलिया-७
*अगोरत हावव तोला*
सुधार के बाद
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तोला जब देखव नहीं, तरसत रहिथे नैन |
तड़फत रहिथँव तोर बिन,नइ पावँव मैं चैन ||
नइ पावँव मैं चैन, नहीं कुछु मोला भावय |
आँखी गोरी मोर, घटा सावन बन जावय ||
जिनगी आवस मोर, तोर बिन बिरथा चोला |
हवय दरस के आस, अगोरत हावँव तोला ||
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सुनिल शर्मा

गुरुवार, 4 मार्च 2021

मँहगाई(कुण्डलिया)

मँहगाई
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मँहगाई के मार से, जनता सारी त्रस्त |
सत्ता को चिंता नहीं, अपने में है मस्त ||
अपनें में है मस्त, गैस का दाम चढ़ा है |
तेल निकाले तेल, शतक की ओर बढ़ा है ||
देखे आलू प्याज ,याद नानी है आई |
कोई करो उपाय, रुलाए ये मँहगाई ||
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सुनिल शर्मा