कुंडलिया-७
*अगोरत हावव तोला*
सुधार के बाद
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तोला जब देखव नहीं, तरसत रहिथे नैन |
तड़फत रहिथँव तोर बिन,नइ पावँव मैं चैन ||
नइ पावँव मैं चैन, नहीं कुछु मोला भावय |
आँखी गोरी मोर, घटा सावन बन जावय ||
जिनगी आवस मोर, तोर बिन बिरथा चोला |
हवय दरस के आस, अगोरत हावँव तोला ||
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सुनिल शर्मा
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