मंगलवार, 25 मई 2021

मुझे बेचैन जब(विधाता छंद 8)

विधाता छंद-8

मुझे बेचैन जब देखे सुकूँ अपना भी खोता है |
परेशाँ देखकर मुझको नही रातों में सोता 
है |
महज बेटा नही जानो हृदय का मीत है मेरा,
मुझे वह देखकर रोते स्वयं भी संग रोता 
है ||

सुनिल शर्मा"नील"

रविवार, 23 मई 2021

मुक्तक-7(विरहा के पावक में जलते)

मुक्तक-7
साँसों का घट तुम बिन मेरा देखो कैसे रीत रहा |
हार रहा आशा का दीपक दुख का तूफ़ा जीत रहा |
चाह मिलन की लिए अधूरी तुमसे ना मर जाऊँ मैं,
विरहा के पावक में जलते हरपल मेरा बीत रहा ||

सुनिल शर्मा"नील"

गुरुवार, 20 मई 2021

यार चार दे देना(विधाता छंद -6)

विधाता-7

भले जीवन में कष्टों का मुझे अंबार दे 
देना |
खुशी के खेत में दुःखों के खरपतवार दे देना |
गिला कोई नही ईश्वर न शिकवा ही 
करूँगा मैं,
भले कुछ भी न दे पर यार मुझको चार दे देना ||

सुनिल शर्मा"नील"

मंगलवार, 18 मई 2021

विधाता छंद-5(रोया नही हूँ मैं)

विधाता-5

बड़ी मुद्दत से रातों को सनम सोया नही हूँ मैं |
हुआ अरसा नयन में आपके खोया नही हूँ मैं"|
गई तुम जिंदगी से संग सबकुछ ही गया मेरा,
किया मन तो बहुत खुल के मगर रोया नही हूँ मैं ||

सुनिल शर्मा"नील"

शुक्रवार, 14 मई 2021

सभी कर्तव्य है भूला(विधाता 4)

मनुज तू लाँघकर सीमा बहुत था गर्व से फूला |
किया दूषित पवन-जल को, सदा ही स्वार्थ में झूला |
धरा पर हक सभी का है, दिया था मंत्र दाता ने,
विधाता मान कर खुद को, सभी कर्तव्य है भूला ||

सुनिल शर्मा "नील"

बुधवार, 12 मई 2021

विधाता खेल ये तेरे(विधाता छंद 2)

विधाता खेल ये तेरे समझ हमको नहीं आते।
चले जो सत्य के पथ पर सदा दुख है यहाँ पाते।
बड़े ही शान से जीते हैं अक्सर नीच-पापी जन,
मनुज सच्चे हमें क्यों छोंड़कर जल्दी चले जाते।।

सुनिल शर्मा "नील"

कोरोना टीका(सरसी छंद 2)

सरसी छंद-2
दूसर प्रयास
सुधार के बाद
(विषय- कोरोना टीका)


कोरोना के आये टीका, जा के सब लगवाव |
सब जवान अउ सब सियान मन, जिनगी अपन बचाव |

लीलत हवय प्राण ला लाखों, कोरोना बन काल |
उही बाँचही जे अपनाही, ये टीका के ढाल |

भारी मिहनत कर वैज्ञानिक, एला हवय बनाय |
फैलावव अफवाह आप झन, कहत हवय कविराय |

सर्दी खाँसी वाले मन सब, पहिली जाँच कराव |
आय निगेटिव जब रिपोर्ट हर, टीका तब लगवाव |

हफ्ता भर तक रखव ध्यान ला, भीड़-भाड़ झन जाव |
रहव सुरक्षित घर मा सब झन, गरम-गरम सब खाव |

लड़बो जब जुरमिल जम्मों झन, परबो नइ बीमार |
होही जीत हमर भारत के, कोरोना के हार ||

सुनिल शर्मा"नील"

मंगलवार, 11 मई 2021

सरस्वती वंदना( सरसी छंद 2)

सरसी छंद- 1
सरस्वती वंदना
(सुधार के बाद)

शारद मइया बंदत हावँव, तोला बारंबार |
अंधकार के नाश करव माँ, करव ज्ञान उजियार ||

गीत,-छंद -रस बर किरपा हो, पावँव शब्द बिधान |
तन-मन आवय काम देश के, अइसन दव वरदान || 

स्वर देवव माँ मोर कंठ ला, गावँव भारत गीत |
बनय मोर कबिता हा मरहम, बगरै सदा  पिरीत ||

जस ला गावँव मैं किसान के, लिखँव बीर के त्याग |
लिखँव मया के ढाई आखर, देशभक्ति के राग ||

नारी के सम्मान लिखँव मैं, अउ बैरी बर आग |
पबरित रहय मोर चोला हा, लगय कभू झन दाग ||

कफ़न तिरंगा मिलय देंह ला, जब छोडँव संसार |
बहै देश मा अमन चैन के, सुग्घर निरमल धार ||

सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया

सोमवार, 10 मई 2021

दिलों के साफ मानुष क्यों(विधाता छंद)

विधाता खेल ये तेरे समझ हमको नही आते |
चले जो सत्य के पथ पर यहाँ पर दुख सदा पातें |
बड़े ही शान से जीतें यहाँ पर नीच-पापी जन,
दिलों के साफ मानुष क्यों भला जल्दी चले जातें ||

सुनिल शर्मा"नील"

रविवार, 9 मई 2021

जो घूरतें बेटियाँ

जो घूरतें है बेटियाँ
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इंसानियत की बात अब, करना फिजूल है ।
हैवानियत ही बन गयी ,अब तो उसूल है ।

हर रोज लुट रही है ,बेटियों की अस्मतें
माँगने पे न्याय कहते है,तुम्हारी ही भूल है!

दरिंदों को नही डर कोई,कानून का यहाँ
शैतान को ये मानते,अपना रसूल है!

कितने बने कानून पर,यह धुल नही सकी
कबसे जमी हुई जो,वासना की धूल है!

जो घूरतें है बेटियाँ,औरों की वे सुनले
पाते नही वे आम जो,बोतें बबूल है!

सब बेटियों को पाठ यह,माँ बाप सीखा दें
बनना है उन्हें शूल,नही बनना फूल है !

अपराध तो अपराध है,नही रंग दो इसको
क्यों मौन हो गीता पे औ असीफा पे तूल है!
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                         -सुनिल शर्मा"नील"
                            थानखम्हरिया(छ. ग.)
                            7828927284
                            सर्वाधिकार सुरक्षित

शुक्रवार, 7 मई 2021

बरस मुझ पर घटा बन प्यार का(विधाता श्रृंगार मुक्तक)

बिना तेरे पिया जीवन लगे मुझको जमीं बंजर |
सभी दुश्मन मुहब्बत के लिए है हाथ में खंजर |
कहीं लगता नही है दिल तुम्हारे बिन करुँ क्या मैं,
बरस मुझपर घटा बन प्यार का तू दे बदल मंजर ||

सुनिल शर्मा"नील"

लगे मन को मनोरम जो(श्रृंगार विधाता मुक्तक)

लगे मन को मनोरम जो सुखद श्रृंगार हो ऐसा |
निकलता है हृदय के कोर से उद्गार हो ऐसा |
लखन की उर्मिला सी प्रीत प्रियतम का लिए मन में, 
मिला जन्मों के तप से जो मुझे उपहार हो ऐसा ||

सुनिल शर्मा"नील"