बुधवार, 19 अप्रैल 2017

भारती निराश

अपना वजूद जो स्वंय जानते हैं नहीं
अपने से छोटा मानते हैं आसमान को
भारती निराश आज लाड़लों का हश्र देख
सेना से ही राजनेता माँगते प्रमान को
हाथ में बँदूक पर हाथ बँधे सैनिकों के
लगता बदलना पड़ेगा संविधान  को
मारा जा रहा है थप्पड़ों से सैनिकों को हम
मौन हैं क्या हो गया है देश के प्रधान को

मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

भारतीय सेना के सैनिकों को पत्थरबाजों के लात मारने पर दिल्ली से आह्वान करती एक रचना

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भारती निराश आज,लाडलों का हश्र देख
सेना के जवान यहाँ,लात-जूते खा रहे
हाथ है बन्दूक पर,तंत्र ने है बांधे हाथ
सिंह के सम्मुख देखो,श्वान गरिया रहे
देश आज चाहता है,खोया हुआ स्वाभिमान
दिल्ली दे आदेश लाखो,हाथ खुजला रहे
सूद संग होगा प्रतिकार,दुश्मनों से अब
जीते जी जलेंगे जो कि,पत्थर चला रहे!
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गीत पाकी गा रहे

गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

वंदेमातरम गाता हूँ,,,

क्षमा नहीं कर सकता हूँ मैं भाग लगाने वालों को ।
भारत माँ की पा्वनता पर दाग लगाने वालों को ।
मैं वाणी का वरद पुत्र हूँ वंदेमातरम गाता हूँ ।
जीवित ही दफना दूँगा इन आग लगाने वालों को ।

कलम नही रूक सकती है,,,,,

गरिमा मेरे स्वाभिमान की कभी नहीं चुक सकती है ।
नजर किसी के सन्मुख मेरी कभी नहीं झुक सकती है ।
जब तक अश्रू नहीं रुकेगें शोषित जन की आँखों के ।
तब तक मेरे इंकलाब की कलम नहीं रुक सकती है ।