मंगलवार, 12 सितंबर 2017

सदा ही स्वार्थ बोला है

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प्रदूषित कर दिया जल को ,जहर वायु में घोला है
लहू से मूक जीवों के,रँगा तेरा ये चोला है
मिला उपहार कुदरत का  ,उसे बरबाद कर बैठा
अरे मानव तेरी जिव्हा,सदा ही स्वार्थ बोला है!
☺☺☺☺☺☺☺☺

रविवार, 10 सितंबर 2017

तेरे इस जीभ ने मानव(मुक्तक)


किया दूषित है जल तूने,जहर वायु में घोला है
रक्त से मूक जीवों के,रँगा तेरा ये चोला है
मिली थी प्रकृति उपहार,तू बरबाद कर बैठा
तेरे इस जीभ ने मानव,सदा ही स्वार्थ बोला है!

शनिवार, 9 सितंबर 2017

अब कोई प्रद्युम्न

भेजा था बालक जहाँ,पाने जीवन ज्ञान
उस स्कूल ने काल बन,निगला देखो प्राण

वादा लेकर था गया,फ़िल्म का था प्रोग्राम
लेकिन आई लाश है,कैसी काली शाम

बेटे का क्या दोष था,दिया गया क्यों मार
बेसुध माँ मासूम की,करती यह चित्कार

पापा पत्थर से खड़े,नयनों में अश्रुधार
दीपक आँगन का बुझा,छाया है अंधियार

लाखो लेते फीस पर,सुरक्षा पे है मौन
यक्षप्रश्न यह उठ रहा,जिम्मेदार है कौन

हिंदू-मुस्लिम पे सदा,रोटी सिकते दिन रात
पर  बच्चों की मौत पर,कोई करे न बात

मतदाता ये है नही,बात यही है सार
वरना सियासत यहाँ,करती शब्द बौछार

किंचित न व्यापार हो,शिक्षा का यह काम
पावन मंदिर ज्ञान का,कभी न हो बदनाम

अब कोई प्रद्युम्न न,कभी भी मरने पाए
ऐसा मिलकर आओ हम,भारत नया बनाए!












अब कोई प्रद्युम्न न

भेजा था बालक जहाँ,पाने जीवन ज्ञान
उस स्कूल ने काल बन,निगला है इक प्राण

वादा लेकर था गया,फ़िल्म का था प्रोग्राम
लेकिन आई लाश है,कैसी काली शाम

बेटे का क्या दोष था,दिया गया क्यों मार
बेसुध माँ मासूम की,करती यह चित्कार

पापा पत्थर से खड़े,नयनों में अश्रुधार
दीपक आँगन का बुझा,छाया है अंधियार

लाखो लेते फीस पर,सुरक्षा पे है मौन
यक्षप्रश्न यह उठ रहा,जिम्मेदार है कौन

हिंदू-मुस्लिम पे सदा,रोटी सिकते दिन रात
पर  बच्चों की मौत पर,कोई करे न बात

मतदाता ये है नही,बात यही है सार
वरना सियासत यहाँ,करती शब्द बौछार

किंचित न व्यापार हो,शिक्षा का यह काम
पावन मंदिर ज्ञान का,कभी न हो बदनाम

अब कोई "प्रद्युम्न" न,कभी भी मरने पाए
नील कहे आओ नया,भारत एक बनाए

सब मिलकर रस्ता गढ़े,सूनी न हो कोई गोद
अधरों में खुशियाँ रहे,हर पल हो आमोद!

शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

कविता नही

पढा करो शिद्दत से मुझे तुम
मैं कविता नही अपने हालात लिखता हूँ

जड़े लोकतंत्र

राजनीति का स्तर गिराने में लगे है
एक दूजे को नीचा दिखाने में लगे है
शब्दों की मर्यादा भूल यहाँ कुछ नेता
जड़ें लोकतंत्र की हिलाने में लगे है !

बुनियाद लोकतंत्र की

राजनीति का स्तर गिराने में लगे है
एक दूजे को नीचा दिखाने में लगे है
शब्दों की मर्यादा भूल यहाँ कुछ नेता
नींव लोकतंत्र की हिलाने में लगे है !

लोकतंत्र को

स्तर राजनीति का खिसकाने में लगे है
एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे है
मर्यादा आचरण की भूलकर कुछ नेता
लोकतंत्र को यहाँ गिराने में लगे है !

लोकतन्त्र को

स्तर राजनीति का खिसकाने में लगे है
आग विद्वेष का भड़काने में लगे है
विरोध में मर्यादा भूलकर कुछ नेता
लोकतंत्र को यहाँ रुलाने में लगे है !

ताश हो गए

किसी के इतिहास हो गए
किसी के पास हो गए
जिंदगी एक खेल हो गई
गड्डी के हम ताश हो गए

बुधवार, 6 सितंबर 2017

कर्म के बिन यहाँ फल


साफ जल में कमल तो खिलेगा नही
कर्म के बिन यहाँ फल मिलेगा नही
पथ में बनके जो चट्टान संकट अड़े
बिन किए श्रम क़भी भी हिलेगा नही!

बिन तपे कोई

212 212 212 212
साफ जल में कमल तो खिलेगा नही
कर्म के बिन यहाँ कुछ मिलेगा नही
प्रकृति का नियम है बड़ा ही सरल
बिन तपे कोई कुंदन बनेगा नही!

212 212 212 212
साफ जल में कमल तो खिलेगा नही
कर्म के बिन यहाँ कुछ मिलेगा नही
प्रकृति का नियम है बड़ा ही सरल
बिन तपे कोई कुंदन बनेगा नही!

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

जो तूफानों,,,

212 212 212 212
साफ जल में कमल तो खिलेगा नही
बिन निशा के सवेरा मिलेगा नही
जिंदगी में है इतिहास लिखते वही
जो तूफानों के आगे हिलेगा नही !

सोमवार, 4 सितंबर 2017

कान्हा आ जाओ

(रचनाकार-सुनिल शर्मा "नील",थान खम्हरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
कलयुग में बढ़ते पाप और भगवान् कृष्ण की वर्तमान में आवश्यकता की सार्थकता को प्रदर्शित करती मेरी रचना,कृपा कर बिना रचनाकार के नाम से काटछाट किए बिना शेयर करें..................
कान्हा आ जाओ
प्रेम की राह जग को दिखाने आ जाओ
कान्हा तुम सबके कष्ट मिटाने आ जाओ|

तुमने यमुना के लिए मारा था कालिया को
यहाँ हर नदियाँ प्रदूषित बचाने आ जाओ|

मित्रता भी होती है हैसियत देखकर यहाँ
पाठ सच्ची मित्रता का पढ़ाने आ जाओ|

तेरी प्यारी लाखो गउऐं कटती है हर रोज
प्राण उनके काल से छुड़ाने आ जाओ|

लूटती है अस्मत रोज बहनों की चौक पर
लाज दुशासनों से उनकी बचाने आजाओ|

पुरुषत्व मौन है हर अर्जुन के अंदर आज
उपदेश गीता का फिर सुनाने आ जाओ|

मौजूद हर घर पापाचारी शिशुपाल यहाँ
धार सुदर्शन की इन्हें दिखाने आ जाओ|

परिभाषा बदल दी प्रेम की कामकीड़ों ने
अर्थ सच्चे प्रेम का इन्हें बताने आ जाओ|

मारा था द्वापर में तुमने हत्यारे कंश को
भ्रूण के हत्यारो को भी चेताने आ जाओ|

कौरव ताकतवर सही इस कलयुग में
सत्यरुपी पांडवों को जिताने आ जाओ|

सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया,बेमेतरा
(छत्तीसगढ़)
7828927284
9755554470
रचना-05/09/2015
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