किया दूषित है जल तूने,जहर वायु में घोला है रक्त से मूक जीवों के,रँगा तेरा ये चोला है मिली थी प्रकृति उपहार,तू बरबाद कर बैठा तेरे इस जीभ ने मानव,सदा ही स्वार्थ बोला है!
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