शनिवार, 9 सितंबर 2017

अब कोई प्रद्युम्न न

भेजा था बालक जहाँ,पाने जीवन ज्ञान
उस स्कूल ने काल बन,निगला है इक प्राण

वादा लेकर था गया,फ़िल्म का था प्रोग्राम
लेकिन आई लाश है,कैसी काली शाम

बेटे का क्या दोष था,दिया गया क्यों मार
बेसुध माँ मासूम की,करती यह चित्कार

पापा पत्थर से खड़े,नयनों में अश्रुधार
दीपक आँगन का बुझा,छाया है अंधियार

लाखो लेते फीस पर,सुरक्षा पे है मौन
यक्षप्रश्न यह उठ रहा,जिम्मेदार है कौन

हिंदू-मुस्लिम पे सदा,रोटी सिकते दिन रात
पर  बच्चों की मौत पर,कोई करे न बात

मतदाता ये है नही,बात यही है सार
वरना सियासत यहाँ,करती शब्द बौछार

किंचित न व्यापार हो,शिक्षा का यह काम
पावन मंदिर ज्ञान का,कभी न हो बदनाम

अब कोई "प्रद्युम्न" न,कभी भी मरने पाए
नील कहे आओ नया,भारत एक बनाए

सब मिलकर रस्ता गढ़े,सूनी न हो कोई गोद
अधरों में खुशियाँ रहे,हर पल हो आमोद!

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