बुधवार, 8 मार्च 2023

वरना न अबकी बार

देखो मैं होली में न कुछ मलाल करूँगा |
रोकर नही मैं खुद का बुरा हाल करूँगा |
ली है कसम तेरे ही हाथ से रंगूंगा मैं |
वरना न अबकी बार गाल लाल करूँगा ।।

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2023

टेडीबियर

जो रुलाकर तुम्हे करती खुद को चीयर |
चीट करके तुम्हे कहती जानू डियर |
आप रहना नही उनके हरगिज नीयर |
आपको मान खेले जो टेडी बियर ||

सुनिलशर्मा 

बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

जय जय श्री बागेश्वरधाम की-(बागेश्वर सरकार पर शानदार कविता)

जय बागेश्वर सरकार

एक ही अकेला सबसे है लड़ता
हिंदुओ के हित दानवों से भीड़ता

सीताराम हनुमान जाप करता
पीर रामभक्तों के नित्य हरता

तेज मुखड़े पे शौर्य है ललाट पे
चमके है सूर्य जैसे शैलराट पे

हिन्दुशेर जब कभी भी गर्जना करे
वामियों के दल का ये साहस हरे

देशभक्ति भाव वाणी से जगा रहा
देश के बिधर्मियों को है कँपा रहा

जय-जय ऐसे कर्ता व काम की
जय जय श्री बागेश्वरधाम की ||

क्रमशः....

कवि सुनिल शर्मा नील
छत्तीसगढ़
8839740208
7828927284




बुधवार, 11 जनवरी 2023

विवेकानंद-मुक्तक


धर्मध्वजा भारत का जिसने दुनियाभर में फहराया |
यश स्वदेश के मिट्टी का जिसके प्रयत्न से बढ़ पाया |
जिस विवेक के दम पर हमने आनंद तक की यात्रा की |
नमन उन्हें जिसने जग को भारत का दर्शन समझाया ||

शनिवार, 12 नवंबर 2022

राम बोले शबरी के बेर जैसा

एक बार सीता जी ने प्रश्न किया राघव से
आचरण आपका ये समझ न आया है |

गृहभोज गुरु मुनि मात ने खिलाया किन्तु
श्रेष्ठ स्वाद शबरी के बेर का बताया है |

मायापति आपकी ये कौन सी है माया कहो
शिष्टाचार नाथ कैसा आपने निभाया है |

राम बोले प्रिये मैंने शबरी सा प्रेम भाव
व्यंजनों में किसी के न आजतक पाया है ||

सुनिल शर्मा 'नील'
छत्तीसगढ़
8839740208

शनिवार, 10 सितंबर 2022

हिन्दी दिवस पर मुक्तक


कही खोई हुई है जो उसे अब ढूँढ़
लाए हम |
चलो अब मान हिंदी का उसे फिर से 
दिलाए हम |
अधूरा है लगे श्रृंगार इस हिन्दी के बिंदी 
बिन |
चलो माथे पे भारत माँ के इसको फिर 
सजाए हम ||


सुनिल शर्मा "नील"



रविवार, 28 अगस्त 2022

बागीश्वरी सवैया-रिसाये हवै फुलकैना

वागीश्वरी सवैया
प्रयास-पहिली

हरौं दीयना मैं हरै तेल ओहा मया डोर मा हे बंँधे ये नता |
उही मोर आशा उही मोर साँसा उही मोर मुस्कान के ये पता |
लगै ना कुछू काम मा मोर जी हा करौ का समाधान देवौ बता |
रिसाये हवै फूलकैना सुबे ले भला मोर ले होय हे का खता ||

सुनिल शर्मा 'नील'