चक्कर चौरासी के लगाके घनचक्कर हूं
चक्रधारी चाकर पे अब तो दया करो
विरह के व्याल बार- बार डसते है मुझे
वासुदेव मौन क्यों हो कुछ तो बयां करो
दृष्टि से नेह वृष्टि करो नाथ सृष्टि के
छोड़ सब आज काज मेरी कृपया करो
बूझे दीप खुशियों के जीवन वृथा सा लगे
गतिहीन नील के जीवन में नया करो
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