सोमवार, 20 अप्रैल 2020

नील के दोहें-1

अंक
*****
जबसे गोरी लग गई,आकर मेरे अंक
मैं अमीर तबसे हुआ,रहा नही अब रंक!

कंक
*****
रखना मन में धैर्य को,जैसे रखता कंक
कार्य सिद्ध होंगे तेरे,निश्चित और निशंक

पंक
****
जो मन में रखते सदा,ईर्ष्या का है पंक
उनसे दूरी ही भली,जाने कब दे डंक!!

सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया

सिंह वाली छाप है

हैवानों के ताप से है,भारत संतप्त आज
किंतु मौन कैसे बैठे,सीएम जी आप है !

कानून भी हाथ बांध,भूला हुआ है कर्तव्य
सड़कों पे नाच रहे,शैतानों के बाप है!

हिन्दू शेर की धरा पे,साधुओं का हुआ कत्ल
और आप कुरसी का,ले रहे जी नाप है

न्याय कीजिये हे राजा,और ये बताइये कि
आप में पिता के जैसे,सिंह वाली छाप है!!

कवि सुनिल शर्मा नील
थानखम्हरिया
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गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

घाव यह बन जाए नासूर,,,,

कडवें पर सच्चे दोहें
..........

पत्थरबाजो का हुआ,चरम देश में पाप
इनको ऐसा दंड दो,रूह भी जाए काँप !

नर्सों पर जो थूककर,करतें पापाचार
गिरेबान उनके पकड़,भेजो कारागार

कोरोना से भी बुरा,यह मकरजी जमात
पृष्ठभाग पर दीजिए,इनके जमकर लात!

जो कलाम को छोड़के,पूजे अफजल चित्र
वे कैसे होंगे भला,भारत के जी मित्र

चुप रहकर जो शत्रु को,शह देतें दिनरात
उनके असली चाल को,समझो सारे भ्रात

मंजिल में थे हम मगर,जीत न पाए पाँव
जिसका डर था वो हुआ,मिला हमें फिर घाव

इससे पहले घाव यह,बन जाए नासूर
इनके सारे  हौसलें,मिलकर करिए चूर!

कवि सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छत्तीसगढ़)
7828927284
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सोमवार, 13 अप्रैल 2020

हिंदी सजल

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   *हिन्दी सजल विधा*
हिन्दी गजल के समकक्ष हिन्दी *सजल* एक नयी काव्य विधा है । इसको उर्दू के वह्रों से मुक्त रखा गया है । गजल के व्याकरण की जटिलताओं से मुक्त रखा गया है । सजल, शिल्प के अपने मानकों पर सृजन का मार्ग प्रशस्त करती है । इसके शिल्प में तीन बातें ही मान्य की गयी हैं -
1.समान मीटर अर्थात सभी पंक्तियों का मात्रा भार समान हो ।
2.सभी पदिकों की कोई भी निश्चित लय की एक रूपता हो ।
3.कहन मुक्तक वाली एवं कसावट पूर्ण हो, गीत वाली न हो ।
         ❣❣❣
हिन्दी गजल से सजल का कोई विरोध नहीं है । सजल में उर्दू के दुरूह शब्दों का प्रयोग अमान्य है । सिर्फ बोलचाल के सरल उर्दू शब्द मान्य हैं ।
         ❣❣❣
सजल के अंगों को  हिन्दी में बोलने के लिए नामकरण इस प्रकार किया गया है -

गजल            = सजल
गजलकार      = सजलकार
शेर               = पदिक
काफिया       = समांत
रदीफ           = पदांत
मुरद्दिफ        = सपदांत
गैर मुरद्दिफ   = अपदांत
मतला          = आदिक
मक्ता          = अंतिक
मिसरा        = पल्लव(पंक्ति)
वज्न          = मात्रा भार
        ❣❣❣
🌷जय हिन्द🌷जय हिन्दी🌷

नील के सजल-हो पवित्र गंगा सी पावन

सजल सादर प्रस्तुत-
समांत - ईल
पदांत- कहूँ मैं
मात्राभार-16
🙏🙏
    
सागर तुमको नील लिखूँ मैं
संस्कारी सुशील लिखूं मैं!

हो पवित्र गंगा सी बिल्कुल
आंखों को क्या झील कहूँ मैं।

मैं पतंग सा प्रियतम तेरा
मत दो मुझको ढील कहूँ मैं।

कोई ताकें पथ में तुमको
उन सबको क्या कील कहूँ मैं!

अंधेरे राहों का सहारा
क्या तुमको कंदील कहूँ मैं!

सुनिल नील

रविवार, 12 अप्रैल 2020

जो श्रम करके स्वयं के श्रेय को

जो श्रम करके स्वयं के श्रेय को औरों को देता है !
फंसे नैया किसी की जब भी तब आकर के खेता है !
धड़कता है हृदय जिनका सदा परमार्थ की खातिर ,
वो मर जातें है पर यह जग सदा नाम उनका लेता है!!

कोरोना वाहक

कोरोना वाहक बनें,किया साजिशन वार
उनसे क्या संवेदना,उनका क्या उपचार!

रविवार, 5 अप्रैल 2020

आओ दीप हम जलायें आज द्वार द्वार पे,,,

हार जाएगा अंधेरा एकता के वार से
आओ दीप हम जलाए आज द्वार-द्वार पे !

है समय बड़ा विकट,अंधेरा ये बलवान है
पथ बड़े विरान है,गली भी सुनसान है
क्या धनिक कि क्या विपन्न सारे परेशान है
कोरोना बना रहा धरा को शमशान है
राजनीति छोड़कर करें ये काम प्यार से
आओ दीप हम जलाएं आज द्वार द्वार पे!

मौत को हरा रहे जो यह जले उनके लिए
जो फँसे हुए कहीँ है यह जले उनके लिए
कर्मवीर जो लगे है यह जले उनके लिए
जो खड़ें है सरहदों पे यह जले उनके लिये
न झुकें थें न झुकेंगे कहेंगे ये संसार से
आओ दीप हम जलाए आज द्वार द्वार पे!

यह दीया प्रतीक है अकेलेपन के नाश का
जीत की सुगंध का व हर्ष के आभास का
यह दीया सनातन में आस्था का अंग है
इसमें श्रद्धा,आशा,संकल्प के भी रंग है
दुःख के पलों में बनें हम खुशियों के बौछार से
आओ दीप हम जलाए आज द्वार द्वार पे!!

कवि सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया(छत्तीसगढ़)
7828927284
सर्वाधिकार सुरक्षित

शनिवार, 4 अप्रैल 2020

कलयुग ये दैत्य

मानवता के दूत पर,थूक रहे जो लोग
इनको मृत्युदंड मिले,धरती के ये रोग !
धरती के ये रोग,मिले उपचार न इनको
वे सारे गद्दार,पसन्द भारत न जिनको
कहें नील कविराय,भरी इनमें दानवता
कलयुग के ये दैत्य,नही भाएँ मानवता!!

गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

कोरोना का ग्राफ

सोंची समझी चाल है,नियत न इनकी साफ
तीन दिनों में क्यों बढ़ा,कोरोना का ग्राफ!!

तू तब भी जागता है

बिताए संग जो पल थे,उन्हें अक्सर सँजोती हूँ !
तेरी जब याद आती है,मैं पलकों को भिगोती हूँ !
मेरी साँसों में,मेरी रूह में ऐसा बसा है तू ,
तू तब भी जागता है मुझमें जब रातों को सोती हूँ !!

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

तू तब भी जागता है

बिताए संग जो पल थे,उन्हें अक्सर सँजोती हूँ !
तेरी जब याद आती है,मैं पलकों को भिगोती हूँ !
मेरी साँसों में,मेरी रूह में ऐसा बसा है तू ,
तू तब भी जागता है मुझमें जब रातों को सोती हूँ !!