गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

घाव यह बन जाए नासूर,,,,

कडवें पर सच्चे दोहें
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पत्थरबाजो का हुआ,चरम देश में पाप
इनको ऐसा दंड दो,रूह भी जाए काँप !

नर्सों पर जो थूककर,करतें पापाचार
गिरेबान उनके पकड़,भेजो कारागार

कोरोना से भी बुरा,यह मकरजी जमात
पृष्ठभाग पर दीजिए,इनके जमकर लात!

जो कलाम को छोड़के,पूजे अफजल चित्र
वे कैसे होंगे भला,भारत के जी मित्र

चुप रहकर जो शत्रु को,शह देतें दिनरात
उनके असली चाल को,समझो सारे भ्रात

मंजिल में थे हम मगर,जीत न पाए पाँव
जिसका डर था वो हुआ,मिला हमें फिर घाव

इससे पहले घाव यह,बन जाए नासूर
इनके सारे  हौसलें,मिलकर करिए चूर!

कवि सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छत्तीसगढ़)
7828927284
सर्वाधिकार सुरक्षित









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