रविवार, 5 अप्रैल 2020

आओ दीप हम जलायें आज द्वार द्वार पे,,,

हार जाएगा अंधेरा एकता के वार से
आओ दीप हम जलाए आज द्वार-द्वार पे !

है समय बड़ा विकट,अंधेरा ये बलवान है
पथ बड़े विरान है,गली भी सुनसान है
क्या धनिक कि क्या विपन्न सारे परेशान है
कोरोना बना रहा धरा को शमशान है
राजनीति छोड़कर करें ये काम प्यार से
आओ दीप हम जलाएं आज द्वार द्वार पे!

मौत को हरा रहे जो यह जले उनके लिए
जो फँसे हुए कहीँ है यह जले उनके लिए
कर्मवीर जो लगे है यह जले उनके लिए
जो खड़ें है सरहदों पे यह जले उनके लिये
न झुकें थें न झुकेंगे कहेंगे ये संसार से
आओ दीप हम जलाए आज द्वार द्वार पे!

यह दीया प्रतीक है अकेलेपन के नाश का
जीत की सुगंध का व हर्ष के आभास का
यह दीया सनातन में आस्था का अंग है
इसमें श्रद्धा,आशा,संकल्प के भी रंग है
दुःख के पलों में बनें हम खुशियों के बौछार से
आओ दीप हम जलाए आज द्वार द्वार पे!!

कवि सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया(छत्तीसगढ़)
7828927284
सर्वाधिकार सुरक्षित

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