मंगलवार, 31 जनवरी 2017

क्योंकि मुहब्बत को मैं,,,

बस इसलिए उसका इन्तजार किया करता हूँ...
क्यूँकि मुहब्बत को मैं खुदा कहता हूँ.....
देर है उसके घर पर अंधेर नहीं करता.....
एक इसी आस में सजदे किया करता हूँ......

सुनिल शर्मा
देवांगन पारा,थान खमरिया
7828927284

मंगलवार, 24 जनवरी 2017

कलम लोभ लिखे

"कलम पीड़ा नही लोभ लिखे"
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जब अखबारों में झूठ दिखे
कलम पीड़ा नही लोभ लिखे
लोकतंत्र को लगता "ग्रहण"है
अंधेरों को कभी जो सूरज बिके|
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सुनिल शर्मा "नील"
थानखम्हरिया(छत्तीसगढ़)
7828927284
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23/01/2017

शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

रोशनी आज उसकी


चिलमन से कर इशारे,बेताब कर रही है
मेरी मुहब्बत मुझे ,आदाब कर रही है
चाँद  जल रहा है मेरे चाँद को देखकर
रोशनी आज उसका,महताब कर रही है

सोमवार, 16 जनवरी 2017

लौटना है राही को

लौटना है"राही"को......
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चंद टुकड़े कागज के पाकर
इतराता है आदमी
इसे पाने रिश्तों का लहू
बहाता है आदमी
ये जानकर लौटना है"राही"
को एक दिन
जाने क्यों "घर" सराय को
बताता है आदमी!
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सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छत्तीसगढ़)
78289272846
Copyright
16/01/2017

भूल जाता है राही


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चंद कागज को पाकर इतराता है
आदमी
इसे पाने अपनों का भी लहू बहाता
है आदमी
भूल जाता है "राही"घर लौटना है
सफर के बाद
जाने क्यों "सराय"को घर अपना
बताता है आदमी!
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सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छत्तीसगढ़)
7828927284
Copyright
16/01/2017

शुक्रवार, 13 जनवरी 2017

बुधवार, 11 जनवरी 2017

छेरछेरा दान के बिज्ञान हरय.......

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हमर संसकीरती,हमर पहिचान हरय
छत्तीसगढ़ी परंपरा के बिधान हरय
का जानही एला"भीख"कहइयामन
परब"छेरछेरा"तो दान के बिज्ञान हरय!
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सुनिल शर्मा "नील"
थानखम्हरिया(छ. ग.)
7828927284
12/01/2017
CR



शमशीर कलम यदि,,,,,

शमशीर कलम यदि,,,,,,
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शमशीर कलम यदि कर लो तुम,तस्वीर बदल ही जाएगी
पापों की लंका वारों से,निश्चित तेरे जल
जाएगी
मिट जाएंगे सन्त्रास सभी,मजलूमों और
मासूमों के
लौटेगा तब त्रेता उस दिन,औ धन्य धरा
हो जाएगी!
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कवि सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
7828927284
11/01/2017
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सोमवार, 9 जनवरी 2017

इंसाफ

दोहा-इंसाफ
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कहाँ यहाँ क़ानून है,कहाँ यहाँ इंसाफ़
खच्चर घोड़ो से भले,कहते है ये साफ़!
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रचना-09/01/2017

कौड़ी के तीन है

कौड़ी के तीन है,,,,,,
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दौलत से राजा,संस्कारों से हीन है
स्वार्थ के पुतले,संवेदनाओं से दीन है
वैसे तो घोलके पीए बैठे है किताबें
पर मानवता के नाम पे कौड़ी के तीन है
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रचना-09/01/2017

गुरुवार, 5 जनवरी 2017

मुक्तक-वतन के नाज बन जाओ

मुक्तक-चमन के नाज बन जाओ
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बिखर जाओ फिजाओं में,चमन को
आज महकाओ
दिलों में है छुपा शोला,उसे तुम आज
भड़काओ
उठो शमशीर बनकर तुम,मिटाने पाप
भारत से
भगत,आजाद सम तुम भी,वतन के नाज
बन जाओ|
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कवि सुनिल शर्मा "नील"
थानखम्हरिया,(छत्तीसगढ़)
7828927284
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05/01/2017