शनिवार, 29 अक्तूबर 2016

एक दीप भारतीय फ़ौज के लिए

""एक दीप भारतीय फ़ौज के लिए "" ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● जिनके बलिदानों से ही शांति का दीया जगमगाता है जलाना एक दीप उनके लिए भी जिनसे भारत मुस्कुराता है| ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● सुनिल शर्मा"नील" थान खम्हरिया,बेमेतरा 7828927284 30/10/2016 Copyright

शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2016

एक कदम उजाले की ओर

"एक कदम उजाले की ओर" ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
"तम" को "श्रम" से हराकर,तिरंगा लहर-लहर लहराते है
"उद्यम" के महामंत्र से,भारत को पुनः
विश्वगुरु बनाते है
असीमित ऊर्जा निहित है हममें,आओ
पहचाने इसे
उजाले की ओर चलो एक कदम
बढ़ाते है

कहीं बर्बाद होता भोजन,कहीं लोग भूखे सो जाते है
ऐसे असमानता के रहते भला,किस
विकास पर इतराते है
इस दीवाली शांत कर भूखों की
क्षुधा को
प्रकाश में दीए के चलो "भूख" को
जलाते है

"बेटियाँ" आज भी भीड़ में निकलने से
घबराती है
कितनी बेटियों की अस्मत हर रोज लूटी
जाती है
करके दुशासनों का वध,हराकर कौरव
सेना को
समाज में नारी को निर्भयतापूर्वक जीना
सिखातें है

स्वार्थ में अंधे होकर हमने स्वयं पर ही
वार किया
नष्ट किया जल,जंगल और जमीन को
जीवों का संहार किया
इससे पहले पूर्णतः नष्ट हो जाए प्यारी
प्रकृति
चलो नारा "सहअस्तित्व" का जन-जन को सिखातें है

किस बात की डिग्रियाँ जब तक देश में अशिक्षा का नाम है
अंध्विश्वास और कुरीतियों के कारण राष्ट्र होता बदनाम है
हर कोने तक प्रकाशित हो शिक्षा का दिव्य प्रकाश
परस्पर मिलकर चलो एक ऐसा "दिनकर"
उगाते है

हमारे सुकून की खातिर जो सीमा पर प्राण गंवातें है
देश के कुछ आस्तीन फिर भी जिनका हौंसला गिराते है
बनकर संबल ऐसे माँ भारती के
सपूतों का
आतंकवादियों को चलो उनकी औकात
बताते है

स्वच्छता का भारत के हर घर में
संस्कार हो
स्वस्थ रहे समाज मेरा न कोई इसमें
विकार हो
भाव ये प्रतिबद्ध होकर दौड़े हर
भारतवासी  में
चलो मिलकर एक नया "स्वच्छ भारत
बनाते है| ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●
सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया,बेमेतरा(छ. ग.)
7828927284
28/10/2016
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बुधवार, 26 अक्तूबर 2016

है रीत यहाँ बिलकुल उल्टी

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सूना-सूना मंदिर दिखता,पर मदिरालय
में चहल-पहल
कलयुग तो पापों का कीचड़,पर बनना
चाहे कौन "कमल"
है रीत यहाँ बिल्कुल उल्टी,मुर्दों को
पूजा जाता है
जीते जी मिलता प्यार नहीं ,मरने पर बनते ताजमहल  ।
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सुनिल शर्मा "नील"
थानखम्हरिया,बेमेतरा(छ. ग.)
7828927284
26/10/2016
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मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

हो सार तुम

मेरे जीवन के वीणा की हो तार तुम
मेरे साँसों के सरगम की झंकार तुम
कितनी रचना रची है तुम्हे देखकर
मैं कवि मेरी कविता की हो सार तुम|
★★★★★★★★★★★★★★★★★★
सुनिल शर्मा"नील"
थांनखम्हरिया,बेमेतरा(छ. ग.)
7828927284

सोमवार, 24 अक्तूबर 2016

दोहा-संसार

इस पापी संसार में,ना कर भल की चाह
भटके कितने ही पथिक,जिसने पूछी राह
24/10/2016