मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

हो सार तुम

मेरे जीवन के वीणा की हो तार तुम
मेरे साँसों के सरगम की झंकार तुम
कितनी रचना रची है तुम्हे देखकर
मैं कवि मेरी कविता की हो सार तुम|
★★★★★★★★★★★★★★★★★★
सुनिल शर्मा"नील"
थांनखम्हरिया,बेमेतरा(छ. ग.)
7828927284

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