मोर पंख
बुधवार, 12 मई 2021
विधाता खेल ये तेरे(विधाता छंद 2)
विधाता खेल ये तेरे समझ हमको नहीं आते।
चले जो सत्य के पथ पर सदा दुख है यहाँ पाते।
बड़े ही शान से जीते हैं अक्सर नीच-पापी जन,
मनुज सच्चे हमें क्यों छोंड़कर जल्दी चले जाते।।
सुनिल शर्मा "नील"
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