मोर पंख
शुक्रवार, 7 मई 2021
लगे मन को मनोरम जो(श्रृंगार विधाता मुक्तक)
लगे मन को मनोरम जो सुखद श्रृंगार हो ऐसा |
निकलता है हृदय के कोर से उद्गार हो ऐसा |
लखन की उर्मिला सी प्रीत प्रियतम का लिए मन में,
मिला जन्मों के तप से जो मुझे उपहार हो ऐसा ||
सुनिल शर्मा"नील"
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