सवैया -5
(राजा दशरथ जी अपने वंश दीपक न होने से निराश है और ईश्वर से प्रार्थना करतें है)
राज मिला सुख साज मिला सिर ताज मिला तबहू सुख नाहीं |
पूत नही तव भार कहो सुरनायक मोर
कहाँ उठ पाहीं |
सूर्य समान प्रदीप्त रहा रघुवंश भला अब
कोन चलाहीं |
हाथ खड़े करजोर कहे अवधेश कृपा करहू अब ताहीं ||
सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया(छत्तीसगढ़)
8839740208
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