लहर की ये रवानी जब,तटों से चोट खाएँगे मिटेगी सारी ही गर्मी,हाथ से नोट जाएँगे थकेंगे जब जमाने से,करेंगे याद घर को ही ढलेगी शाम,शाखों पर,परिन्दे लौट आयेंगे।
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