नही भाते उजाले को,,,,अंधेरे में ही रहते है जो करते व्यर्थ तारीफें,उन्हें ही मित्र कहते है स्वयं में मुग्ध है देखें,,यहाँ कितने कविगण ही जो झूठी शान की धारा में,दिन और रात बहते है !
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