जिंदगी में कभी पाना तो कभी खोना है
हर वक्त का रोना तो बेकार का रोना है !
चार दिन मिले है डर-डरकर क्यों जीना
जो लिखा है आखिर में एकदिन होना है !
क्या विश्राम करना जिंदगी के सफर में
जब मंजिल पर पहुँचकर जीभर सोना है !
खाली हाथ आए और खाली हाथ जाना है
द्वेष,निंदा,बुराई,बेवजह क्योंकर ढोना है!
मनुष्य होकर मनुष्य से आखिर कैसी दूरी
इंसानियत पर हैवानियत का कैसा टोना है!
अविश्वास,धोखा,बेईमानी,में आकंठ डूबा
नही अब दिलों में मुहब्बत का कोई कोना है !
जो जैसा बाँटता है वही तो पाता है"नील"
संस्कारों के पौधें यही सोंचकर बोना है!
-सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया
7828927284
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