मेला
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आना जाना है लगा, जीवन मेला जान |
मृत्यु अंतिम सत्य है,क्यों करता अभिमान|
क्यों करता अभिमान, पालता द्वेष है मन में |
जीवन के दिन चार,प्रेम करले जीवन में |
कहे नील कविराय, अमर मर कर हो पाते |
कर के जो परमार्थ,यहां से जो भी जातें ||
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सुनिल शर्मा"नील"
छत्तीसगढ़
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