गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

कुंडलिया(बसंत)

कुण्डलिया-2
*बसंत*
●●●●●
गावत कोयल रूख मा, हवा सुघर ममहात |
झरगे जुन्ना पान सब, नवा पान हे आत ||
नवा पान हे आत, फूल हे आनी -बानी |
लहरावत हे खेत, चुनर ला पहिरे धानी ||
आमा मउरे देख, सबो के मन ला भावत |
आगे हवय बसंत, धरा के मन हर गावत ||
●●●●●
सुनिल शर्मा"नील"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें