कुण्डलिया-2
*बसंत*
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गावत कोयल रूख मा, हवा सुघर ममहात |
झरगे जुन्ना पान सब, नवा पान हे आत ||
नवा पान हे आत, फूल हे आनी -बानी |
लहरावत हे खेत, चुनर ला पहिरे धानी ||
आमा मउरे देख, सबो के मन ला भावत |
आगे हवय बसंत, धरा के मन हर गावत ||
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सुनिल शर्मा"नील"
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