शनिवार, 7 जुलाई 2018

तुम्हारे लिए

              तुम्हारे लिए,,,,,
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है मेरे पाप इतने कि मैं इनको ढो नही सकता !
है इतने दाग दामन पे कि उनको धो नही सकता !
लगी ठोकर स्वयं को जब तो जाना दर्द तेरा है ,
अभागा हूँ मैं इतना चाहकर भी रो नही सकता !!

आस इतनी है तुझसे मिलके दिल की बात कह लेता !
मै पश्चाताप के आँसू में संग-संग स्वयं बह लेता !
नही मैं चाहता कंटक बनू तेरी गृहस्थि का ,
तू अपने हाल में रहती मैं अपने हाल में रह लेता !!

नही जी पाऊंगा जो कहना है तूझसे दिल मे रखकर मैं !
सदा जलता रहूँगा होकर अतृप्त नफरत को सहकर मैं !
मुझे सम्भव हो तो तुम माफ कर उपकार कर देना ,
कहीं ऐसा न हो तृष्ना रहे अमर,मर जाऊं जलकर मैं!!

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