शनिवार, 30 जनवरी 2021

मैं किसान कह दूँ(घनाक्षरी)

अपने ही भाइयों का ,रक्त जो बहा *रहे* थे
कैसे ऐसे मूर्खों को,मैं सुजान कह दूँ ?

स्वयं के ही देश को जो,फूँकने को आतुर हो
कैसे ऐसे रावणों को ,हनुमान कह दूँ ?

हल वाले हाथों से जो, लहराए तलवार
कैसे उन्हें धरती का ,भगवान कह दूँ ?

निज स्वार्थ हेतु *करे*, तिरंगे का अपमान
कैसे ऐसे गद्दारों को, मैं किसान कह दूँ??

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