शनिवार, 14 नवंबर 2015

"लईका मन हरय देस के भविस"

जिनगी के सबले सुग्घर समे होथे नानपन|नानपन यानी न चिंता अउ न फिकर कुछु नहीं|बस दिनभर खेलना,बाबू ल घोड़ा बनाना,दाई ल पदोना,बबा अउ डोकरी दाई करा कहिनी सुनना,फुरफनदी अउ तितली पकड़ेबर पाछु-पाछु धउड़ना,पानी म काजत के डोंगा तहुराना ,अउ रात कन थकके सो जाना|हर मनखे ल अपन नानपन जिनगी के सबले सुग्घर समे लगथे|तब न जिनगी म कोनो संसो रहय अउ न कमाय-धमाय के कोनो फिकर| तिहार-बहार के असल मजा घलो नानपन म आथे|जइसे-जइसे बड़े होबे जिममेदारी अउ संसों-फिकर बाढ़त जाथे,सब तिहार फिक्का लगेबर धर लेथे|हमर देस म अड़बड़ झन महापुरुस अउ बड़का नेता होइस जेन मन लईका मन ल अड़बड़ मया करय|देस के पहिली परधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी,भारत के सबले लोकपिरीय रास्टपति सवरगीय अब्दुल कलाम जी,अटल बिहारी जी,विवेकानंद जी जम्मों झन ह लईकामन ल देस के भविस केहे हे|हर लईका बिसेस हे ये बात ल उमन समझइन |इखर कहना रहय कि लईका खुस रही त देस घलो खुस रही|हमला लईकामन के खुसीबर जउन बन पड़े तेन करना चाही|धियान देना चाही कि हम अइसन कोनो काम झन करन जेखर ले लईका के नानपन बरबाद होवय|

" पं.जवाहरलाल नेहरू के जनमदिन कहाथे बालदिवस"
हमर देस के पहिली परधानमनतरी नेहरू जी ह लईका मन ल अतका मया करय कि ओखर जनमदिन(14 नवम्बर) ल बालदिवस रूप म मनाय जाथे|बालदिवस माने लईकामन के दिन|एक झन कबि सुग्घर केहे हे-लईकामन ल चाँद-तारा ल छुवन दव ,चार ठन किताब पढ़ के उहू मन हमरे कस हो जही|एखर मतलब लईका मन ल बड़े तो एक न एक दिन होनाच हे ओखर सेती उखर नानपन ल बरबाद करना ठीक नइहे|दूसर बात जइसे कोनो मकान के मजबूती ओखर नेहे ले जाने जाथे ,जतका मजबूत नेहे होही मकान घलो वइसने सुग्घर बनही|अइस्नेहे लईकामन हमर देस के नेहे(अधार) हरे|एमन ल जतका बने संसकार अउ सिछा मिलही देस वतके आघु बाढ़ही|लईकामन नेहरू जी ल अड़बड़ मया करय |नेहरू जी ल परेम से लईका मन 'चाचा नेहरू'कहय|नेहरू जी जिहां भी जावय लईकामन के भीड़ लग जाय|नेहरू जी ह घलो लईका बन के उखर संग गोठ करय न कि परधानमंत्री बनके|लईकामन म चाचा नेहरू अतका परसिद्ध रिहिस कि लईकामन घलो ओखर सदरी-पइजामा अउ लाल गुलाब के नकल करय|आज के दिन इस्कूल मन म 'बाल दिवस' म लइका मन के अड़बड़ अकन कारिकरम होथे|जेमा लईका मन निबंध ,गीत-कबिता,देशभक्ति नाटक केे परसतुती देथे|लईका मन आज अड़बड़ खुस रहिथे|नेहरू जी के कहना रहय की जतका सुग्घर लईकामन ल संस्कार मिलही वतके सुग्घर उमन मनखे बनही|दाई ददा लईका मन ल लाड करय फेर संस्कार संग कोनो समझउता झन करय|मसीन म लइकामन बचपन झन गवावय|जइसे कि आज देखब मआवत हे|लईकामन आज मोबाईल अउ टीबी म खुसरे रहिथे|लईकामन के गतिबिधि मन म धियान देवय|संस्कार धीरे-धीरे सिखोवय न कि थोपय|नेहरू जी अपन बेटी इंदिरा ल अड़बड़ मया करय इतना मया कि ओखर बर कई ठन चिट्ठी पतरी लिखय|एखर ऊपर एकठन किताब घलो लिखे गे हवय|जम्मों चिट्ठी म नाननान बात ल अउ गियान-बिगयान के बात ल नेहरू जी अपन बेटी ल बताय हे|

"लईकामन देखय सपना"
हमर देस के सबले परसिध रास्टपति मिसाइलमैन कलाम जी के कहना रहिसे कि लईका मन ल बचपन ले सपना देखे बर सीखोवय|सपना देखना भर नइहे ओला पूरा करेबर मिहनत करना घलो हे|सपना ओ नोहय जेन ल हमन सोवत सपनाथन सपना तो ओ हरे जेन हमन ला सोवन नइ दय|गरीब परवार म जनम धर के अपन सपना देखके अउ ओला पूरा करके ओहा खुद सबले बड़े उदहारण बनिस|कलाम जी जिहा जावय लईका मन ल सपना देखे अउ ओला जीए बर कहय|बड़े बड़े कॉलेज अउ आई आई आई टी के लईका मन ओला सुने बर ललाय रहय|लईकामन बर कलाम जी रोल माडल रिहिसे अउ रिही|एक देस ल बाढ़े बर उहा के लईकामन ल सपना देखना जररी हे ये कलाम जी के कहना रहिसे|

"झन होवय बरबाद कखरो नानपन"
लईका मन बर सिच्छा खच्चित जररी हे फेर ओखर बदला म उखर नानपन झन नगाय जाय|आजकल देखथन जतका जड़ लईका नइ राहय ओखर ले गरू बस्ता ह रहिथे|घर अउ इस्कूल दुनो म सिरिफ पढ़ई अउ एको कन नइ खेलइ म उखर कोंवर मन ह अइलावत हे|का काम के अइसन पढई जेन बपरा लईका मन के नानपन ल बरबाद कर दय|हमन ल सिक्षा देना हे न कि थोपना हे|हमन ल लईका मन के रहन सहन,सुवास्थ अउ कोरा मन के बिसेस खियाल करना चाही| अपन सपना ल लईकामन ऊपर गरू झन बनावय,उखर बचपना के हतिया झन करय|

"बाल श्रम कानून के कड़इ से होवय पालन"
आज घलो नाननान लईका मन ल होटल, बासा ,दूकान अउ रेती-गारा डोहारत बनिहारी के बुता करत देखे जाथे|कानून म एखर बर काम करवइया बर सजा के नियम हे तभो ले कहाँ बाल श्रम ह रूकत हे|न सिरिफ एमा रोक लगाना भलकि दूसर कोती वो लईका मन के पढई लिखाई के बेवस्था घलो करना जररी हे|अइसन लईकामन के घरेलू हालत ऊपर अउ उखर गरीबी दूर करे बर सोंचे बर परही|कोनो लईका जूठा गिलास धोवत अउ बनिहारी करत झन दिखय |सरकार के संग-संग समाज घलो अइसन लईका मनबर सोंचय ताकि कोनो लईका के भविस बरबाद झन होवय|बाल अयोग के गठन के कामे इही हरय कि कोनो लईका के बचपन काम के गरू म झन मरय|इखर मन बर रतिहा इस्कूल के बेवस्था करे जा सकत हे ,अइसे इस्कूल जिहां रेहे अउ खाय दुनो के बेवस्था रहय|कई जघा अइसन इस्कूल चलत घला हे|जब तक गरीब लइकामन इस्कूल ले दूरिहा रही तब तक हमर बिकास अभिरथा हे |महापुरुस मन के सपना तभे पूरा होही जब सब लईका सुग्घर इस्कूल पहुचके अपन भविस गढ़ही| हम जम्मो नागरिक मन ल घलो अपन करतब्य समझ के अइसन लईका मन के भविस बनाय बर उदीम करना चाही|
सुनिल शर्मा 'नील'
थान खम्हरिया,बेमेतरा
7828927284
CR

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें