मंगलवार, 15 अक्तूबर 2019

नील के सजल-4

विधा-सजल
मात्राभार-18
पदान्त-रहना
समांत-अते

दुख जैसा भी हो हँसते रहना
सदा सत्य पथ में चलते रहना

बाधाएं आती है आने दो
साहस से आगे बढ़ते रहना

आशाएं लाखों  हैं आँखों  में
नित नवल प्रतिमान गढ़ते रहना

रहता गुलाब जैसे शूलों में
तुम भी उसी तरह पलते रहना

तूफानों से कभी मत घबराना
लड़कर दीपक सा जलते रहना !!

कवि सुनिल"नील"
7828927284

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें