प्रीत की परंपरा ही , रही सदा भारत की
किसी से कभी भी बैर, ठानते नही है हम |
सत्य, अनुराग सदा , है हमारी पहचान
बेगुनाहों पर शस्त्र, तानते नही है हम |
खेलभावना के संग ,खेलतें है खेल सदा
छल छिद्र द्वेष कोई ,जानतें नही है हम |
लाख मिले दर्द ,गम , घाव से भरा हो तन
मन से कभी भी हार, मानते नही है हम ||
सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया(छत्तीसगढ़)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें