मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

विष पीकर शंकर ,,,

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शब्दों को धरातल पर लाता क्यों नहीं
अपने हिस्से का दीया जलाता क्यों नहीं
बहुत आसाँ है उठाना दूसरों पे उंगली
विष पीकर शंकर बन जाता क्यों नही?
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सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छ. ग.)
7828927284

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