सोमवार, 7 दिसंबर 2015

""माटी बर जीबो""

       """"माटी बर जीबो"""
माटी बर जीबो हमन, मरबो माटी पार ।
माटी के महिमा गजब, कहिथे सबो अपार ।।

जे माटी जनमेस तै, मया जेखरे पाय ।
उडानूक तै होय के, ओही ला बिसराय ।।

दू आखर पढ़के भला ,गजब आज इतराय ।
बोले बर भाखा अपन, कइसे आज लजाय ।।

जेने भाख दिस मया, जेने दिस पहिचान ।
बेटा राहत ले उही ,सहत हवय अपमान ।।

दाई कस माटी हरे, पावन गंगा जान ।
राखव ऐखर लाज ला, बाते मोरे मान ।।

बीरनरायन अउ भगत ,फाँसी झूले हास ।
रानी झांसी के घला,माटी करे उजास ।।

माटी बर जीबो हमन,  रखबो एखर मान ।
ये माटी के नाव ला, करबो सबो जहांन ।।

सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया,बेमेतरा(छ.ग.)
रचना-06/12/2015
7828927284
CR

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