शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021

राम सीता विरह(घनाक्षरी छंद)

सुख के प्रतीक सारे लगतें है दुःखकर
तुम बिन वसुधा ये लगती नाराज है |

चंद्रमा भी लगता है ग्रीष्म सम सूर्य अब
अमृत सी ओस लगे विष सम आज है |

तेरा मेरा प्रेम सिया किससे प्रकट करुँ
मात्र दोनों हृदय ही जानते ये राज है |

हृदय मेरा ये रहता सदा तुम्हारे पास
विरह गिराते प्रति पल एक गाज है ||

सुनिल शर्मा नील

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