सुख के प्रतीक सारे लगतें है दुःखकर
तुम बिन वसुधा ये लगती नाराज है |
चंद्रमा भी लगता है ग्रीष्म सम सूर्य अब
अमृत सी ओस लगे विष सम आज है |
तेरा मेरा प्रेम सिया किससे प्रकट करुँ
मात्र दोनों हृदय ही जानते ये राज है |
हृदय मेरा ये रहता सदा तुम्हारे पास
विरह गिराते प्रति पल एक गाज है ||
सुनिल शर्मा नील
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