मंगलवार, 6 मार्च 2018

द्वार आता साहूकार

है किसान अस्तव्यस्त,व्यवस्था से बड़े त्रस्त
अँखियों में आँसू भर,पूछते सवाल है!

हाड़तोड़ श्रम कर,सबको खिलाने वाले
क्यों विवश कौड़ियों में,बेंच रहे माल है!

कि तकादे को बार बार,द्वार आता साहूकार
कैसे ये चुकेगा कर्ज,सोंचके बेहाल है!

जानते है मिलती है,"गोली"न्याय माँगने पे
इसलिए झूल स्वयं,चुन लेते काल है!

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