सोमवार, 28 सितंबर 2020

कृपाण घनाक्षरी-भगतसिंह

बेड़ियाँ को दासता की,भारती की देख-देख
रातों को न कई बार,सोतें थे भगतसिंह

देख के फिरंगियों के,आतताई कदमों को
ज्वालामुखी जैसे तप्त,होते थे भगतसिंह

प्रेयसी के लिए नही,सदा मातृभूमि हेतु
मन ही मन अक्सर,रोतें थे भगत सिंह

भाया नही खेल कोई,बचपन में भी उन्हें
खेतों में बंदूक -गोलें,बोंतें थे भगतसिंह!!

कवि सुनिल शर्मा"नील"
थान खम्हरिया(छत्तीसगढ़)
8839740208
सर्वाधिकार सुरक्षित



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