मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

हरिगीतिका


विषय-गणपति जी



गौरी हरय दाई प्रभू, भोला ददा ये तोर गा |
तैं नाश कर ये पाप के, चारो मुड़ा हे घोर गा |
शुभलाभ के बाबू हरस,शंकरसुवन महराज जी|
तोला जपे मा होय पूरन, भक्त मन के काज जी ||


सूपा असन दू कान हे, हाथी असन माथा हवय |
हे दाँत सुघ्घर एकठन, महिमा भरे गाथा हवय |
फरसा धरे हस हाथ मा, लड्डू बिकट तैं भाय गा |
बलबुद्धि के अस देंवता, जग तोर गुन ला गाय गा ||

बाधा कटय दुख हा मिटय, आशीष दे गणराज जी |
बुधवार आवय तोर दिन, तैं टेर सुन ले आज जी |
माता-पिता के गोड़ मा, तीरथ सबो बतलाय हस |
जे देय दुख इनला हवय, ओला कभू नइ भाय हस ||


गणपति कलम ला  धार दे, आशीष बारम्बार दे |
ये कंठ ला हुंकार दे, भूले कभू झन हार दे|
सत बर सदा बागी बनव, ये देश के रागी बनव |
विघ्नेश मैं त्यागी बनव, अन्याय बर आगी बनव ||

सुनिल शर्मा 'नील'

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