बनी देश का अभिमान
एक आवाज थी जग में पहचान जो ।
अलविदा कह चली देश की शान जो।
माँ बनकर कितनों की जिंदगी बचाकर
विश्वपटल पर बढाई स्वदेश का मान जो!!
राजदूत रही विश्व में भारत के संस्कृति की
अंतिम श्वास तक गाती रही राष्ट्र का गान जो!
दुर्गा तो कभी सरस्वती के दर्शन हुए उनमें
सौम्यता का देती रही आजीवन ज्ञान जो !
मातृ शक्ति का प्रतीक प्रेरणा रही सबकी
माँ भारती की बेटी बनी जनजन का अभिमान जो
स्वहित पर सदा देश को रखा किया ऊपर
कृतित्व से अपने बनी देश की आन जो!
-सुनिल शर्मा "नील"
मापनी : 212 212 212 212
काफ़िया : आन ।
रदीफ़ : जो ।
आन,कान,गान,दान,धान,भान,यान,ज्ञान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें