मुक्तक
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चराचर जगत का होता इससे
कल्याण है
समस्या कैसी भी हो मिलता
समाधान है
किंचित मंत्र नही युक्ति है
मुक्ति की
गायत्री के हर अक्षर में ज्ञान
और विज्ञान है|
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सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया,बेमेतरा
7828927284
31/05/2016
मंगलवार, 31 मई 2016
रविवार, 22 मई 2016
मुक्तक
"जीना व्यर्थ है उसका"
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जनम लेकर के 'मानव' का किसी
के काम न आए
है जीना व्यर्थ ही उसका जिसे पर-
हित नही भाए
भला किस काम की दौलत और
किस काम की शोहरत
जो व्याकुल भूख से मरते को
भोजन दे नही पाए|
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सुनिल शर्मा"नील"
थान खमहरिया(छ.ग.)
7828927284
22/05/20162
CR
मंगलवार, 17 मई 2016
सच्चा इश्क मिले तो
सच्चा इश्क मिले तो
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जीता नही जाता शमशीर से
होता है नसीब यह तकदीर से
सच्चा इश्क मिले तो कद्र करना
बाँध लेना जुल्फ की जंजीर से"
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सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छ.ग.)
7828927284
सोमवार, 9 मई 2016
श्री परशुराम जी पर मेरी कविता
(आज विष्णु जी के 6वें आवेशावतार भगवान परशुराम जी के प्राकट्य दिवस पर लिखी ताजा रचना)
रचनाकार-सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छत्तीसगढ़)
7828927284
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दूषित हुई जब मातृभूमि सत्ता के अत्याचारों से
रोया था गुरुकुल जब पापी
आतंकी व्यवहारों से
तब विष्णु ने जन्म लिया धरती को
मुक्त कराने को
'विद्युदभी फरसे' का धारक परशुराम
कहलाने को
जमदग्नि-रेणुका पुत्र भृगुवंश से
जिसका नाता था
विष्णु का "आवेशावतार"शास्त्र-
शस्त्र का ज्ञाता था
जटाजूट ऋषिवीर अनोखा,अद्भुत
तेज का धारक था
था अभेद चट्टानों सा जो रिपुओं का संहारक था
शिव से परशु पाकर 'राम' से परशुराम कहलाया था
अद्वीतिय योद्धा था जिससे हर दुश्मन थर्राया था
प्रकृतिप्रेमी,ओजस्वी,मात-पिता का आज्ञाकारी था
एक सिंह होकर भी जो लाखो सेना
पर भारी था
ध्यानमग्न पिता को जब हैहय कार्तवीर्य
ने काट दिया
प्रण लेकर दुष्टों के शव से धरनी 21 बार था पाट दिया
आतताइयों के रक्त से जिसने पंचझील
तैयार किया
कण-कण ने भारतभूमि का तब उनका आभार किया
मुक्त कराया कामधेनु को,धरती को
उसका मान दिया
ऋषि कश्यप को सप्तद्वीप भूमण्डल
का दान किया
भीष्म,कर्ण,और द्रोण ने जिनसे शस्त्रों
का ज्ञान लिया
कल्पकाल तक रहने का जिनको विष्णु जी से वरदान मिला
पक्षधर थे स्त्री स्वातंत्र्य के बहुपत्नीवाद पर वार किया
हर मानव को अपनी क्षमता पर जीने तैयार किया
'नील' कहे खुद के 'परशुराम'को हरगिज न सोने देना
अपनी क्षमता पर जीना या खुद को न जीवित कहना|
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(कृपया मूलरूप में ही share करें ,कवि के नाम/कविता के साथ काटछाँट न करें
रचनाकार-7828927284)