गरीबी देख तूने घर का बचपन
अपना खोया है !
सुलाया मुझको फूलों में स्वयं कांटों में
सोया है!
मुझे डाँटा किया हरदम मेरी गलती पे
भाई तू,
फिर उसके बाद कोने में तू जाकर
स्वयं रोया है !!
सुनिल शर्मा "नील"
गरीबी देख तूने घर का बचपन
अपना खोया है !
सुलाया मुझको फूलों में स्वयं कांटों में
सोया है!
मुझे डाँटा किया हरदम मेरी गलती पे
भाई तू,
फिर उसके बाद कोने में तू जाकर
स्वयं रोया है !!
सुनिल शर्मा "नील"
करे जो न्याय सबके साथ वह कानून तो दे दो !
मिटाए रूह की जो प्यास वह मानसून तो दे दो !
गई सरकार कितनी भूख यह लेकिन न मिट पाई,
जरा इन ताकती आंखों को रोटी 2 जून तो दे दो !!
कतको के खाले संगी,होटल के पिजादोसा
दाई के ओ भात कस,नई तो मिठाय जी
सुनले संगीत चाहे,दुनिया के कतको तै
दाई के ओ लोरी कस,कभू नही भाय जी!
खुद भूखे रहिके अपन कौरा ल खवाथे
अइसन दाई के कभू आंसू झन आय जी
धरती के भगवान,दाई हरे पहिचान
जेखर ममता बर, देव भी ललाय जी!!
सुनिल नील