जो घूरतें है बेटियाँ
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इंसानियत की बात अब, करना फिजूल है ।
हैवानियत ही बन गयी ,अब तो उसूल है ।
हर रोज लुट रही है ,बेटियों की अस्मतें
माँगने पे न्याय कहते है,तुम्हारी ही भूल है!
दरिंदों को नही डर कोई,कानून का यहाँ
शैतान को ये मानते,अपना रसूल है!
कितने बने कानून पर,यह धुल नही सकी
कबसे जमी हुई जो,वासना की धूल है!
जो घूरतें है बेटियाँ,औरों की वे सुनले
पाते नही वे आम जो,बोतें बबूल है!
सब बेटियों को पाठ यह,माँ बाप सीखा दें
बनना है उन्हें शूल,नही बनना फूल है !
अपराध तो अपराध है,नही रंग दो इसको
क्यों मौन हो गीता पे औ असीफा पे तूल है!
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-सुनिल शर्मा"नील"
थानखम्हरिया(छ. ग.)
7828927284
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