कुण्डलिया सप्ताह
सृजन 1
हाकी के इस खेल ने, सदा बढाया मान |
तरस रहा है आज यह, ढूँढ़ रहा पहचान ||
ढूँढ़ रहा पहचान, कभी सिरमौर रहा था |
स्वर्ण दिए कितने, कभी जब दौर रहा था ||
माँगें सबका साथ, बहुत कुछ इसमें बाकी |
भारत को यह मान ,दिलाएगा फिर हाकी |
सुनिल शर्मा नील