*************************
पावस में जब सो जाते सब,मन मेरा यह जगता है !
दुनिया को देकर यह खुशियाँ, सिर्फ मुझे ही ठगता है!
बिन पानी ज्यों मीन तड़पती,मैं भी तरसूं पी के बिन,
'हरा-भरा सावन भी पतझर,क्यों विरहिन को लगता है ।।'
************************************************
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें