देखो फिर से आई "होली"
भेदभाव का करें शमन यह संदेशा
लाई होली
रंगप्रीत से रंग दो सबको देखो फिर से
आई होली!
पके अन्न के मीठे दानें,बौराई अमियाँ
की झोली
कोयल रात बिरात कूकती मीठा तू भी
बोल रे बोली!
हरें,नारंगी ,लाल व पीले कितने रंग ले
आई होली
अंदर बाहर ऊपर नीचें खुशियाँ बनकर
छाई होली!
वृंदावन में छा गई मस्ती,राधा की भी
भीगी चोली
कान्हा दौड़ें ले पिचकारी,संग संग गोपों
की टोली!
नील कहें प्रतीक व्यसन का कभी न बनने
पाए होली
हर्ष,उमंग,उत्साह,प्रेम से बस पहचानी
जाए होली11
कवि सुनिल शर्मा "नील"
7828927284
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें