निर्भया की पीड़ा
शर्मसार हुई है मानवता फिर अबला के
चित्कारो से
फिर हुई है शिकार कोई वासना के कुत्सित
विकारों से!
उजड़ गया है आज फिर किसी बेटी का
चमन
जीते जी आज हार गया है फिर किसी
का जीवन!
वह रोती गिड़गिड़ाती और चिखती रही पर न
जागी दैत्यों की चेतना
कैसे कहूँ कहा नही जाता उस अबला की
मुझसे वेदना!
सन्नाटे की हरेक आहट से घबरा जाया
करती है
भय के कारण कोने में डरकर सिमट जाया
करती है!
वो भयावह मंजर अक्सर उसे डराया
करतें है
गंदी मानसिकता के चलचित्र दिखाया
करतें है!
झूल रही है जिंदगी उसकी अस्पताल
में
गूंजा करते थे हँसी कभी घर के दीवाल
में!
बाबा की आंखें पाषाण और माँ के कंठ
अवरुद्ध है
द्रौपदी के चिर बचाने वाले कन्हैया वे आपपर
भी क्रुद्ध है!!
कवि सुनिल शर्मा "नील"
7828927284
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें