तूफानों में मुझे सम्हाला तुम ही तो
पतवार बनी हो
विमुख हुआ जग जब जब मुझसे तुम
ही तो आधार बनी हो
कहने को कितने ही जन है जिनसे
जीवन यह जीवन है
गिनती के है जिनसे मिलकर अनुभूति
होती पावन है
अंतःपुर के गोकुल को जब दुःख का इंद्र
जब लगे डूबाने
प्रेम गोवर्धन लेकर तब-तब तुम ही
तारणहार बनी हो
विमुख हुआ जग जब-जब मुझसे तुम ही तो आधार बनी हो
घोर अंधेरों में मैं जब-जब लगा भटकने पथ दिखलाया
प्रेम,शांति,सहयोग,स्वास्थ्य और धैर्य का तुमने अर्थ बताया
क्रोध से बनते काम बिगड़ते तुमने ही तो कहा है मुझसे
संकट के अरिदल जब आए सदा मेरी तलवार बनी हो
विमुख हुआ जग जब-जब मुझसे तुम ही तो आधार बनी हो
मनमंदिर के सूनेपन में तुमने आकर ज्योत जलाया
जाने क्या देखा,क्या पाया जो मुझ पागल को अपनाया
मुझ पाहन की प्राणप्रतिष्ठा तुमने प्रेम के मंत्रों से की
एक नयापन गढ़कर मुझमें तुमही सिरजनहार बनी हो
विमुख हुआ जग जब-जब मुझसे तुम ही तो आधार बनी हो !!
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