मोर पंख
रविवार, 9 अगस्त 2020
सीमाएं है घाव
मानवता के वक्ष पर,सीमाएं है घाव
यहाँ युद्ध के खेल के,खेले जाते दाव
खेले जाते दाव, लाभ किसको है होता
खोते दोनो पक्ष,सदा दुःख ही यह बोता
खींचो नही लकीर,मनुज करके दानवता
स्वजनों को ले छीन,रौंदकर जो मानवता!!
कवि सुनिल शर्मा "नील"
7828927284
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें