जिस रामनाम से मिली थी आपको ये सत्ता
उस रामनाम को न आपने बिसारा है !
सवा सौ करोड़ लोग आशा पाल रखें थे जो
उन आशाओं पे खरा स्वयं को उतारा है !
बात मन की सुनाने वाला देश का प्रधान
जनता के नयनों का बना प्राण प्यारा है !
वर्षों से बैठे हुए तिरपाल में थे प्रभो
भव्य राममंदिर बनेगा अब न्यारा है !!
कवि सुनिल शर्मा "नील"
थानखम्हरिया(छत्तीसगढ़)
8839740208
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