मानवता के दूत पर,थूक रहे जो लोग इनको मृत्युदंड मिले,धरती के ये रोग ! धरती के ये रोग,मिले उपचार न इनको वे सारे गद्दार,पसन्द भारत न जिनको कहें नील कविराय,भरी इनमें दानवता कलयुग के ये दैत्य,नही भाएँ मानवता!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें