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*हिन्दी सजल विधा*
हिन्दी गजल के समकक्ष हिन्दी *सजल* एक नयी काव्य विधा है । इसको उर्दू के वह्रों से मुक्त रखा गया है । गजल के व्याकरण की जटिलताओं से मुक्त रखा गया है । सजल, शिल्प के अपने मानकों पर सृजन का मार्ग प्रशस्त करती है । इसके शिल्प में तीन बातें ही मान्य की गयी हैं -
1.समान मीटर अर्थात सभी पंक्तियों का मात्रा भार समान हो ।
2.सभी पदिकों की कोई भी निश्चित लय की एक रूपता हो ।
3.कहन मुक्तक वाली एवं कसावट पूर्ण हो, गीत वाली न हो ।
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हिन्दी गजल से सजल का कोई विरोध नहीं है । सजल में उर्दू के दुरूह शब्दों का प्रयोग अमान्य है । सिर्फ बोलचाल के सरल उर्दू शब्द मान्य हैं ।
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सजल के अंगों को हिन्दी में बोलने के लिए नामकरण इस प्रकार किया गया है -
गजल = सजल
गजलकार = सजलकार
शेर = पदिक
काफिया = समांत
रदीफ = पदांत
मुरद्दिफ = सपदांत
गैर मुरद्दिफ = अपदांत
मतला = आदिक
मक्ता = अंतिक
मिसरा = पल्लव(पंक्ति)
वज्न = मात्रा भार
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🌷जय हिन्द🌷जय हिन्दी🌷
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